🙏अंबेडकर जयंती की शुभकामना🙏


संवाद


'शिक्षा और धर्म की खोज को समर्पित प्रतिभा'


बाबा साहेब का नाम जितना ज्यादा लिया जा रहा है,उतना ही ज्यादा हम उनके जीवनमंत्र से दूर होते जा रहे हैं। बाबा साहेब के जीवन को गहराई से देखें तो पहला जीवनमंत्र यही मिलता है कि वे शिक्षा की खोज में थे। परमात्मा एक से एक प्रतिभा धरती पर भेजता रहता है और वह किसी भी धर्म,जाति,क्षेत्र और लिंग में पैदा हो जाती है-


'कुसुम मात्र खिलते नहीं राजाओं के उपवन में


अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुंज कानन में


कौन जाने रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल


गुदड़ी में रखती चुन चुनकर बड़े कीमती लाल।'


              उपजाऊ भूमि और खाद-पानी मिलने पर वह प्रतिभा का बीज एक दिन महावृक्ष बन सकता है।अच्छी शिक्षा ने बाबा साहेब को उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया, जहां पर पहुंचकर वे सभी के कल्याण के लिए एक संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा सके। स्वतंत्रता के अमृतकाल में भी वह शिक्षा हमारे वंचित वर्गों के लिए कहां उपलब्ध हैं? परतंत्रता के काल में बाबा साहेब को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाना पड़ा, स्वतंत्रता के अमृत काल में भी प्रत्येक दिन 500 से अधिक भारतीय प्रतिभाएं विदेशी नागरिकता ग्रहण कर रही हैं। बातें तो हम विश्वगुरु बनने की करते हैं किंतु हकीकत यह है कि गुरुओं की खोज में अब भारत कोई नहीं आता। एक समय था जब नालंदा और तक्षशिला में पढ़ने के लिए विश्व की प्रतिभाएं खिंची चली आती थीं।स्वतंत्रता के संघर्ष को राह दिखाने वाले अधिकांश महापुरुष विदेशों से पढ़कर आए और आज भी विदेशों से पढ़कर आने वाले लोग ही मार्गदर्शक बने हुए हैं। आज तो हमारी शिक्षा विशेषकर सरकारी शिक्षा की ऐसी दुर्दशा हो गई है कि शिक्षा बांटने वाले केंद्र के रूप से ज्यादा सामान बांटने वाले केंद्र के रूप में इसकी पहचान होती जा रही है।


            बाबा साहेब का दूसरा जीवनमंत्र मुझे यह दिखाई देता है कि वे एक वैज्ञानिक धर्म की खोज में थे जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता हो-


'फिर रहा है आदमी भूला हुआ भटका हुआ


एक न एक लेबल हर एक माथे पर है लटका हुआ


आखिर इंसान तंग सांचों में ढला जाता है क्यों


आदमी कहते हुए अपने को शरमाता है क्यों?'


                       हिंदू धर्म में पैदा होने के कारण जिस भेदभाव का शिकार उन्हें होना पड़ा और जिस अस्पृश्यता का दंश उन्होंने झेला, वह व्यक्ति के लिए तो असह्य है ही, किसी धर्म के लिए भी महाकलंक है। उन्होंने अपने अनुकूल धर्म की खोज की और अंत में बौद्ध धर्म की शरण में गए। बहुत बड़ा संदेश यह छुपा हुआ है कि धर्म एक खोज है।


            किसी भी धर्म में जन्म लेने मात्र से व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता। रहस्यदर्शी ओशो कहते हैं कि किसी हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई के घर में जन्म ले लेने मात्र से कोई हिंदू, मुस्लिम,सिख और ईसाई नहीं बन जाता है। 99% लोग तो सिर्फ जन्म के कारण किसी धर्म के हो जाते हैं किंतु वे धार्मिक नहीं हो पाते। विरले होते हैं जो अपने धर्म की खोज करते हैं और सही अर्थों में वे ही धार्मिक हो पाते हैं। हिंदू घर में जन्म लेने के बावजूद वर्द्धमान,गौतम और नानक ने अपने धर्म की खोज की। उनकी कड़ी तपस्या के बाद जैन धर्म,बौद्ध धर्म और सिख धर्म अस्तित्व में आए। यहूदी घर में जन्म लेकर भी मरियम के बेटे ने अपने धर्म की खोज की। उस खोज ने उन्हें ईसा मसीह बना दिया और ईसाई धर्म अस्तित्व में आया।


           सनातन धर्म का मूल संदेश यही है कि बहुत बड़ी तपस्या के बाद व्यक्ति धर्म को उपलब्ध होता है। 'मैं कौन हूं?'-इस प्रश्न को लेकर जब व्यक्ति साधना के जगत में प्रवेश करता है और स्वाध्याय के द्वारा उत्तर को खोज लेता है तो वह पाता है कि 'शिवोहम्'अर्थात् मैं शिव हूं। शिवत्व को प्राप्त हुए व्यक्ति से जगत का कल्याण ही कल्याण होता है। बाबासाहेब के जीवन को देखें तो सारे  विष को पीने के बाद भी उन्होंने महिला हो या मजदूर सभी के कल्याण के लिए संविधान में प्रावधान किया।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹