🙏सांस्कृतिक पहचान को विश्व सम्मान🙏


संवाद


'गीता और नाट्यशास्त्र विश्वविरासत'


विश्व विरासत दिवस के अवसर पर गीता और नाट्यशास्त्र को 'मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर' में यूनेस्को के द्वारा शामिल किया गया ‌। भारतीय  दर्शन और भारतीय संस्कृति के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है। गीता द्वारा जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में दी गई योग-दृष्टि और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र द्वारा प्रदर्शन कलाओं के लिए दी गई सौंदर्य-दृष्टि अद्भुत है।


             भारत की शाश्वत बुद्धिमत्ता और समृद्ध संस्कृति को विश्वमंच पर जो स्वीकृति मिली है,वह भारतीयों के लिए एक तरफ गर्व का क्षण है तो दूसरी तरफ चुनौती का क्षण भी। गर्व इसलिए कि हमारी ऋषिचेतना ने कभी आकाश की ऊंचाइयां स्पर्श की थी और चुनौती इसलिए कि आज हम जाति-धर्म की छोटी-छोटी दीवारों में बंद होकर धरती पर भी जीवन को मुश्किल बना रहे हैं। विश्व की बड़ी-बड़ी प्रतिभाएं जब शोध करके भारत के प्राचीन ग्रंथो में जीवन के अनमोल खजाने को पहचानने में लगी हुई हैं तब हमारी शिक्षा की दशा और दिशा ऐसी है कि हम संस्कृत के ग्रंथों को पढ़ने की क्षमता भी खोते जा रहे हैं, समझने की तो बात बहुत दूर।


                विश्व के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय संस्कृत के ग्रंथों से विज्ञान, धर्म, कला और संस्कृति के सूत्रों को ढूंढकर उसे अपने नाम से नए सिद्धांत के रूप में पेटेंट करा रहे हैं और भारत के विश्वविद्यालय राजनीति के मकड़जाल में फंसकर निरर्थक विवादों को हवा दे रहे हैं। एक समय था जब भारत के शिक्षाविद् महाभारत के रण में भी जीवन के दर्शन को ढूंढ रहे थे‌। और आम जगत में सामान्यजन के लिए नाट्य ,अभिनय,रस,भाव,संगीत आदि को परिभाषित करके जीवन के कष्टों और दुखों से मुक्ति के लिए नाट्यवेद नामक पंचमवेद की रचना कर रहे थे। आज का समय है कि भारत का शिक्षाविद् अपनी प्रतिभा के संरक्षण-संवर्धन के लिए या तो विदेशों की ओर पलायन कर रहा है या भारत में रहने पर किसी राजनीतिक दरबार में स्थान पाने के लिए अपनी प्रतिभा को लगा रहा है। महाकवि कालिदास ने मालविकाग्निमित्र में इसकी ओर संकेत करते हुए कहा था कि जिसकी विद्या केवल आजीविका कमाने में और दूसरों की निंदा में संलग्न है,वह ज्ञान का वणिक है-'यस्यागम: केवलजीविकायै, तं ज्ञानपण्यं वणिजं वदंति।'


             विश्व के बौद्धिक और सांस्कृतिक नेतृत्व के लिए भारतीय प्रतिभा बहुत बड़ी संभावना लिए हुए हैं। किंतु आज देश का दुर्भाग्य है कि प्रतिभा की कोई बात नहीं कर रहा। धर्म और जाति के आधार पर आरक्षण की जितनी बात हो रही हैं उतनी बात यदि प्रतिभा के अन्वेषण,संरक्षण और संवर्धन पर हो तो भारत फिर से विश्वगुरु बन सकता है। बाबा साहेब के जीवन ने इस बात को साबित किया कि परमात्मा प्रतिभा का बीज किसी भी जाति,किसी भी धर्म, किसी भी कुल और किसी भी गोत्र में भेजता रहता है किंतु अच्छी शिक्षा और अच्छे शिक्षक मिल जाने पर प्रतिभा का वह बीज वटवृक्ष बन जाता है जिसके कारण कोलंबिया यूनिवर्सिटी को भी अपने कैंपस में उस भारतीय की मूर्ति लगानी पड़ती है और भारत को भी संविधान निर्माण के लिए उसका आह्वान करना पड़ता है। भारतीय ज्ञान परंपरा कहती है कि विकास का एक ही रास्ता है- प्रतिभा को खोजो और प्रतिभा को संवारो।क्योंकि-


'कौन जाने रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल


गुदड़ी में रखती चुन चुनकर बड़े कीमती लाल।'


तभी तो वाल्मीकि रामायण की रचना करते हैं और वेदव्यास महाभारत की‌। प्रतिभा को महत्व देने के कारण ही अमेरिका आज विश्व का सिरमौर बन गया है‌ और भारत स्वतंत्रता के 75 साल के बाद भी प्रतिभा पलायन के कारण विकासशील बना हुआ है। इसके मूल कारण को बताते हुए संस्कृत का ऋषि कहता है-


'अपूज्यानां यत्र पूज्यन्ते पूज्यानां तु विमानना


त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयं ॥'


अर्थात् जहां अपूज्य और अयोग्य व्यक्तियों का सम्मान होता है और पूजनीय व सम्माननीय व्यक्तियों का अपमान होता है, वहां सदैव दुर्भिक्ष, मृत्यु तथा भय; ये तीनों विपत्तियां छायी रहती हैं।


      आकाश में जब बिजली कौंधती है तो क्षणभर को चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है किंतु उसके बाद का घुप्प अंधेरा इतना घना होता है कि कुछ भी नहीं सूझता। विश्व विरासत की सूची में अपने संस्कृत के ग्रंथों गीता और नाट्यशास्त्र का नाम सुनकर मेरे भी चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हो गया किंतु उसके बाद जब अपने शिक्षा जगत पर दृष्टि गई तो एक घना अंधकार दिखाई देने लगा। हर शिक्षक दबी जबान में यह बात कह रहा है कि हम अपने अर्जित ज्ञान को भी नई पीढ़ी को देने वाली अनुकूल परिस्थिति नहीं बना पा रहे हैं, फिर ज्ञान के नए-नए आयाम में शोध करने के लिए कहां से अनुकूल मन:स्थिति का निर्माण कर पाएंगे-


'बैठे-बैठे बोध रहा हूं , मैं तो खुद को शोध रहा हूं


विरासत का आकाश बड़ा है,कीचड़ में मैं खड़ा हूं।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹