🙏🙏अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि🙏🙏
संवाद
'आहें और बद्दुआएं'
रात को खाना खाते समय टीवी खोलने का मन नहीं हो रहा था, क्योंकि भूख काफी तेज लगी थी। इसलिए खाने पर टूट कर पड़ा। किंतु मैडम ने टीवी खोल दी। ज्यों ही कान में खबरें गई,ऐसा लगा किसी ने शीशा घोल दिया। अब ध्यान खाने की तरफ से एकदम हट गया। धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में मरनेवाले की तरफ ध्यान ऐसा अटका कि खाया हुआ खाना बीच में ही अटक गया।
प्यार में पगे हुए क्रौंच पंछी के जोड़े में से बहेलिए द्वारा एक के मारे जाने पर वाल्मीकि का शोक श्लोक के रूप में बाहर आ गया था-
'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।'
अर्थात् हे बहेलिए! तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर पाओ, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला।
यहां तो 25 के मारे जाने की खबर आ रही थी। कितने अरमान से कश्मीर की खूबसूरत वादियों में प्रेम के क्षणों को अमर बनाने के लिए कोई वहां जाता है। इतने हसीन मौसम में आनंद में डूबे हुए लोगों को देखकर तो रेगिस्तान में तपते हुए लोगों के भी दिलों में ठंडक सी लगने लगती है। किंतु कुछ लोगों का दिल न जाने किस धातु का बना होता है जो नाम और धर्म पूछ कर जोड़ों में से एक को मार देते हैं।
'न उनसे कोई हाथापाई और न कभी लड़ाई।
बस आका के आदेश पर यह कैसी सितम ढाई।।'
सोचो तो जरा किसी की मां अपने बेटे के लौटने का इंतजार कर रही होगी और कोई बेटा-बेटी अपने मां-बाप के लिए राह तक रहे होंगे। एक व्यक्ति कितने रिश्तों में बंधा होता है। उसके खत्म होते ही किसी मां की कोख सूनी हो जाती हैं तो किसी का सिंदूर पूछ जाता है, किसी के सर से साया उठ जाता है तो किसी बहन के रक्षाबंधन का त्यौहार खत्म हो जाता है।
इन आतंकियों ने जन्नत को जहन्नुम बना दिया। बड़ी मुद्दत के बाद फिजाओं में रौनक लौटी थी। सूनी पड़ी वादियां पर्यटकों से गुलजार होने लगी थीं। स्थानीय लोगों के रोजगार के अवसर में इजाफा होने लगा था। अमन और चैन के साथ कश्मीर के झीलों में कलियां मुस्कुराने लगी थीं। अमरनाथ यात्रा की तैयारियां परवान चढ़ने लगी थीं। जहां के खुशनुमा माहौल में खुशी के गीत गूंजने चाहिए थे वहां गोलियों की आवाज और लोगों की चीत्कारें गूंजने लगीं। लगता है किसी की नजर लग गई।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹