क्या जगत मिथ्या है?
May 1, 2025🙏शंकराचार्य जयंती की शुभकामना🙏
संवाद
'क्या जगत मिथ्या है?'
शंकराचार्य का मायावाद पहलगाम की घटना के बाद मेरे लिए विशेष महत्त्व का हो गया है। खुली आंखों से दिखाई देने वाले जगत को भी आदि शंकराचार्य ने सपना कहा। एक सपना वह होता है जो हम बंद आंखों से रात में देखते हैं लेकिन शंकर की नजरों में खुली आंखों से जो दिन में देख रहे हैं,वह भी एक सपना है।
दर्शन का विद्यार्थी होने के बावजूद परीक्षा के लिए पढ़ते समय यह बात समझ में उतनी अच्छी प्रकार से नहीं आई थी, जितनी अच्छी प्रकार से इस समय पहलगाम में मारे गए लोगों के परिवारों के हालात देखकर आ रही है। उल्लास और उमंग से सराबोर पहलगाम के पर्यटकों को 22 अप्रैल के बाद यही जगत हताशा और निराशा से भरा दिखाई पड़ रहा है-
'आए अरमान ले के लुटे लुटे जाते हैं
लोग ज़हां में कैसे दिल को लगाते हैं?'
चंद लम्हों में उनकी दुनिया क्या से क्या हो गई! इन टूटे हुए दिलों को देखकर जब हमलोगों की मन:स्थिति विचलित हो रही है तो जिन पर गुजरी है,उनको कैसे संभाला जाए? शुभम की पत्नी ऐशन्या बोल रही थी कि एक दो सांसें और मिल जाती तो वो मुझे 'आई लव यू' बोल कर जाते। अब ऐसे लोगों के दिलोंदिमाग से उनकी यादें कैसे हटाई जाए? क्योंकि-
'आते रहे वो याद भुलाने के बाद भी
जलता रहा चराग बुझाने के बाद भी।'
आतंकियों ने उनकी जिंदगी के चिराग बुझा दिए किंतु फिर भी यादों में चिराग और भभककर जल रहा है।
'जादू है मेरी आंख में कि उनके नाम में
मिटा न उनका नाम मिटाने के बाद भी।'
इस प्रकार से तो पहलगाम से सब कुछ लुटाकर लौटे पर्यटक विषाद के गहरे भंवर में डूब जाएंगे। उन्हें कोई कृष्ण चाहिए जो अभिमन्यु के मारे जाने के बाद विषाद में डूबते हुए अर्जुन को बाहर निकाल लाए। कृष्ण ने देखा कि विलाप करते हुए अर्जुन को समझाने का अब दूसरा कोई उपाय नहीं है तो उन्होंने एक कुशल उपाय का प्रयोग किया। पिता अर्जुन के समक्ष अभिमन्यु की आत्मा को बुलाया जिसमें अभिमन्यु ने हंसते हुए कहा कि हे वीर अर्जुन! तुम पिछले कई जन्मों में मेरे पुत्र के रूप में इस जगत में आए और हर बार असमय में परलोक सिधारकर मुझे आंसुओं में डुबो दिया। मैंने तो अभी एक बदला लिया है और तुम इतने विचलित हो गए।
इस दृश्य को देखकर अर्जुन असमंजस में पड़ गया कि मैं तो अपने को पिता समझ रहा था किंतु यह अभिमन्यु तो पिछले जन्मों का मेरा बाप निकला। मैं तो यह समझ रहा था कि कौरवों ने मुझे यह ज़ख़्म दिया है किंतु यहां तो कई जन्मों का हिसाब-किताब चल रहा है। अभी तो यह पहला बदला है। कहते हैं तुरंत अर्जुन को बोध हुआ और वह सामान्य हो गया। कृष्ण ने उसकी स्मृति से इस घटना का भी लोप कर दिया और अर्जुन दूसरे दिन युद्ध के लिए तैयार हो गया।
कौरवों की सभा में कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाते हुए भावी महाभारत के दर्शन पहले ही करा दिए और दुर्योधन से पूछा-
'भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण।
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है। '
कुशल उपाय शब्द महात्मा बुद्ध का है। बुद्ध अपने आप को वैद्य कहते थे। पिछले जन्मों की कहानियों से उन्होंने कई मानसिक रोगों का इलाज किया।
शंकर के मायावाद में मुझे यही कुशल उपाय दिखाई देता है। दर्शन की भाषा में यह बहुत जटिल हो जाता है किंतु कहानियों में यह बहुत सरल रूप से स्पष्ट हो जाता है। एक कहानी है कि एक राजा का इकलौता बेटा था। वह पुत्र से इतना प्रेम करता था कि बिना उसे देखे एक पल भी नहीं रह पाता था। उसका पुत्र बहुत सुंदर था ।युवक के रूप में जब तैयार हो युवराज बनने को था तो असाध्य रोग की चपेट में आ गया। उसके बिस्तर के पास लेटा हुआ राजा अचानक एक सपना देखता है। सपने में उसके दस पुत्र होते हैं और सभी सौंदर्य में एक से बढ़कर एक। सभी के साथ वह नौका विहार कर रहा है कि अचानक आए तूफान में सारे पुत्र बह गए।
उसी समय में उसका असली इकलौता पुत्र मर गया। रानी दहाड़ मारकर रोने लगी किंतु राजा चुपचाप देखता रहा। रानी को ऐसा लगा कि राजा को गहरा सदमा लग गया इसी कारण वह रो नहीं पा रहा है। किंतु जब रानी ने राजा से पूछा कि आप रोते क्यों नहीं जबकि आपका प्रिय पुत्र मर गया है? राजा ने कहा कि अभी मैं सपना देख रहा था कि मेरे 10 पुत्र थे, वे सभी नदी की धार में बह गए। अब मैं सोच रहा हूं कि मैं किसके लिए रोऊं ,दस के लिए कि एक के लिए?
पहलगाम में जो मर गए उनको लौटाया नहीं जा सकता किंतु जो अपनों के मर जाने के कारण डिप्रेशन में जा सकते हैं,उनको मानसिक स्वास्थ्य देने के लिए शंकर के मायावाद वाले कुशल उपाय की बहुत जरूरत है।
'जौ सपने सिर काटै कोई
बिनु जागे दुरि दुख ना होई।'
तुलसी बाबा कहते हैं कि जिस प्रकार से सपने में कोई आपका सर काट रहा हो तो जब तक आप जगेंगे नहीं,तब तक आपका दुख दूर नहीं होगा। उसी प्रकार से भारतीय संस्कृति ने एक और जागरण की बात कही है जिसे शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत कहा। इस प्रातिभासिक जगत से जगने पर पता चलता है कि 'ब्रह्म सत्यं ,जगन्मिथ्या'।
भगवान शंकर ने भी यही बात कही थी-
'उमा कहहूं निज अनुभव अपना
सत हरि भजन, जगत सब सपना।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹