🙏डॉ.गिरिजा व्यास मैम को हार्दिक श्रद्धांजलि🙏


संवाद


'संवेदना की प्रतिमूर्ति गिरिजा मैम'


डॉ.गिरिजा व्यास जी का पार्थिव देह पंचतत्त्व में विलीन हो गया पर उनकी स्मृतियां जेहन में जीवंत हो गईं-


'बहारें हमको ढूंढेंगी , न जानें हम कहां होंगे


हमारे बाद अब महफ़िल में अफसाने बयां होंगे...


             उनके एक अफसाने के रूप में आज मेरे घर में दर्शनशास्त्र की डॉ.अंजना रानी जी ने गिरिजा मैम की सुंदर लिखावट दिखाई। अंजना जी की पीएचडी थेसिस पर 14 जनवरी, 2001 को डॉ.गिरिजा व्यास मैम की विषय-विशेषज्ञ के रूप में लिखी गई रिपोर्ट पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला। 'मानव स्वातंत्र्य और जैव- चिकित्सकीय नीतिशास्त्र' विषय पर थेसिस पढ़कर उन्होंने सारगर्भित तरीके से पृष्ठों और बातों का उल्लेख करते हुए अपनी टिप्पणियां तीन पृष्ठों में लिखीं थीं और एक्सपर्ट के रूप में Viva (मौखिक साक्षात्कार) लेने जयपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में पहुंची थीं।


           तब एक प्रतिष्ठित राजनेता के अंदर से झांकती हुई एक शिक्षक की आत्मा के दर्शन हुए। डॉ. गिरिजा मैम के शब्दों में-'राजनीति की तामझाम की दुनिया से दर्शनशास्त्र विभाग में शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच बैठने की अनुभूति वैसी ही है जैसे कोई अपने पूजा घर में बैठता है।'


      फिर उन्होंने घंटों वहां बिताए। 'मानव स्वतंत्रता से लेकर नारी परतंत्रता' तक और 'नैतिकता से लेकर धर्मनिरपेक्षता' तक पर उन्होंने अपनी सूक्ष्म दृष्टि डाली।शोधार्थी को डॉक्टरेट की उपाधि तो मिली ही, साथ ही सभी उपस्थितों को गंभीर विचारों की थाती भी मिली।


आज याद आ रहा है कि प्लेटो ने दार्शनिक राजा की कल्पना की थी। आज राजतंत्र तो नहीं है किंतु आज के नेता राजा से कम नहीं है। किंतु जब गिरिजा जी जैसा एक दार्शनिक व्यक्तित्व नेता बनता है तो जिस संवेदनशीलता और बुद्धिमता की झलक मिलती है, वह अन्यत्र दुर्लभ होती है।


            फिर एक रिश्तेदार के रूप में और एक परिवार के सदस्य के रूप में  उनकी भूमिका ऐसी रही कि वे प्यार से 'दीदी' के रूप में जानी जाती थीं।


        ओशो टाइम्स के एक लेख में ओशो के साथ उनके गहरे लगाव को पढ़कर मेरा व्यक्तिगत लगाव गिरिजा मैम के प्रति और बढ़ा। ओशो ने राजनीति और राजनीतिज्ञों की जैसी धज्जियां उड़ाई है, उसे पढ़कर कोई विश्वास नहीं करेगा कि माउंट आबू के अपने प्रवचनों में और अमेरिका में अपने प्रवास के दौरान मौन काल में भी ओशो को इनसे भजन सुनना बहुत प्रिय था।


                उदयपुर में आयोजित संस्कृत विषय के रिफ्रेशर कोर्स में 2011 में उनका भाषण सुनने का प्रत्यक्ष मौका मिला। तब संस्कृत के श्लोकों के साथ उनकी शेरो शायरी ने संस्कृत के गूढ़तम ज्ञान को इतने सरस तरीके से प्रकट किया कि हृदय प्रसन्न हो गया।


                राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष के रुप उठाए गए उनके कदमों ने तो उनको एक विशेष पहचान दी-


'बंद होठों का था सबक कोई


अब वक्त आया है हम भी बोलेंगे।'


महिलाओं के साथ समाज में हो रहे भेदभाव का मामला हो या कार्यस्थल पर यौन-उत्पीड़न का मामला हो, एक तरफ कानूनों में विशेष प्रावधान करके तो दूसरी तरफ अपनी लेखनी से और वक्तृत्वशैली से समाज को जागृत करके उन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी-


'तुम भी दर्द कहां तक देते,मैं भी दर्द कहां तक सहती


तुम भी उतने बुरे नहीं हो, मैं भी उतनी भली नहीं हूं।'


उनके कार्य और उनके अल्फाज पार्टी,जाति,धर्म,क्षेत्र की दीवारों को तोड़कर आज फिजाओं में गूंज रहे हैं।


आज उनके तीये की बैठक है। शास्त्र कहते हैं कि तीन दिनों तक आत्मा दाहसंस्कार के बाद भी शरीर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती रहती है।तीये के बाद उनकी आत्मा तो शरीर से मुक्त हो जाएगी किंतु परमात्मा से मिलकर अपने सर्वव्यापी स्वरुप में उनकी संवेदना की सुगंध से चमन को सुवासित करती रहेगी।


इस दुख की घड़ी में परमात्मा से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को मुक्ति मिले और परिवारजनों को असह्य वियोग को सहने की शक्ति मिले।


विनम्र हार्दिक श्रद्धांजलि


ओम् शांति:शांति:शांति:🙏🙏🙏


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹