राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा
May 6, 2025संवाद
'राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा'
पहलगाम घटना की प्रतिक्रिया में देश में भावनाओं का ज्वार उफान पर है। भावनाओं के वशीभूत व्यक्ति हर क्रिया के बराबर एवं विपरीत तत्काल-प्रतिक्रिया करता है। किंतु....
'बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए
काम बिगाड़े आपना जग में होत हंसाय।'
भावना के साथ एक परत विचार की भी है। अरस्तु ने कहा था कि मानव एक विचारशील प्राणी है। (Man is a rational animal.) लेकिन ओशो के अनुसार यदि थोड़ी गहराई से देखें तो हम पाते हैं कि मानव विचार की अपेक्षा भावनाओं से ज्यादा चालित होता है। एक अफवाह फैलती है और दंगे भड़क जाते हैं। वस्तुस्थिति या सत्य पता करने के लिए न धैर्य रखता है कोई और न विचार करता है। नेतृत्व के लिए विचारशील होना प्राथमिक गुण है।
भारतीय संस्कृति विचार से भी ज्यादा विवेक को महत्त्व देती है। विचार की कसौटी पर कोई निर्णय सही भी लगता हो तो विवेक उस निर्णय की क्रियान्विति के लिए सही समय की प्रतीक्षा करता है। छल से पांडवों का राज्य जुए में छीन लेना और द्रौपदी को भरी सभा में नग्न करने का प्रयास करना ; मजबूत आधार थे युद्ध शुरू करने के लिए।
पांडव अन्याय और अपमान की अग्नि में जल रहे थे और महाबली भीम भरी सभा में दुशासन की छाती का लहू पीने और दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा कर चुके थे। फिर भी कृष्ण कई विचार सभाओं में युद्ध का विकल्प तलाशते रहे। एक सभा में जब भीम ने कहा-हे केशव! यदि युद्ध नहीं होगा तो मेरी प्रतिज्ञा का क्या होगा?तो कृष्ण ने भीम को स्पष्ट कह दिया कि किसी की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए युद्ध नहीं होता। युद्ध के लिए तो पर्याप्त कारण चाहिए।जब अन्य सारे रास्ते बंद हो जाएं तब युद्ध का रास्ता खोलना चाहिए।
अंत में स्वयं कृष्ण दूत बनकर दुर्योधन को समझाने गए थे। अंतिम विकल्प भी सफल नहीं हुआ दुर्योधन को समझाने में ; किंतु दुनिया को और इतिहास को समझाने में यह विकल्प बहुत प्रभावी रहा कि महाभारत के लिए दुर्योधन की हठधर्मिता और धृतराष्ट्र की अंधता ही जिम्मेदार थी।
1971 में अप्रैल महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने जनरल मानिक शा को पाकिस्तान पर हमला करने के लिए कहा। किंतु जनरल ने पाकिस्तान पर आक्रमण के लिए सही वक्त आने तक धैर्य रखने का सुझाव दिया था जो कि बहुत कारगर रहा।
कोई भी एक व्यक्ति हर क्षेत्र का विशेषज्ञ नहीं हो सकता। किंतु कोई भी एक व्यक्ति निर्णय लेते समय हर क्षेत्र के विशेषज्ञों को ध्यानपूर्वक सुनकर बहुत विचारकर कोई कदम तो उठा सकता है। वह कदम वास्तविकता के धरातल से जुड़ा भी होना चाहिए और दूरदर्शितापूर्ण भी होना चाहिए। निश्चितरूपेण इसके लिए इस समय विशेष में राजनीतिक नेतृत्व और सैन्य नेतृत्व ही सक्षम है।
किंतु युद्ध में सभी प्रभावित होते हैं,अतः इसमें सभी पक्षों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती हैं।खासकर नागरिक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। युद्ध जैसे विशेष संकट के समय नागरिक का कर्त्तव्य क्या हो, इसको बताते हुए हमारे ऋषि कहते हैं-
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे,ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे ,आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥
अर्थात् कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
भाव यह है कि राष्ट्र धर्म से बड़ा इस समय किसी भी नागरिक के लिए और कुछ नहीं हो सकता। माखनलाल चतुर्वेदी की लिखित कविता 'पुष्प की अभिलाषा' के समान हर नागरिक की भी यही अभिलाषा होनी चाहिए-
'मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।'
देश के लिए लड़ने वाले सैनिकों के रास्ते पर स्वयं को अर्पित करने का मतलब होता है कि हर नागरिक देश हित में अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करें। सरकार द्वारा जो भी आदेश या दिशानिर्देश मिले उसका हर नागरिक मन-वचन-कर्म से अनुसरण करें।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹