🙏जय हिंद की सेना🙏


संवाद


'आतंकवाद का दर्शन'


ऑपरेशन सिंदूर की सटीकता,संवेदनशीलता और सफलता ने पहलगाम घटना से आहत दिलों को सुकून तो दिया है, किंतु स्थायी शांति नहीं। आतंकवादी ठिकानों पर हमला करके सेना ने अपना शौर्य दिखा दिया, इसके लिए हमें अपनी सेना पर और सरकार पर गर्व है। किंतु आतंकवाद के दर्शन पर जब तक सम्यक्-शिक्षा द्वारा समझ नहीं विकसित किया जाता तब तक आतंकवाद जड़-मूल से नष्ट नहीं होगा। क्योंकि इनको पोषण तो मजहबी-तालीम से मिलती है। पंजाब से आतंकवाद समूल नष्ट हो सकता है तो कश्मीर से क्यूं नहीं? इसके लिए जरूरी है कि जन-जन में यह बोध पैदा हो कि अनेक प्रकार के वाद दुनिया में आए-साम्यवाद,पूंजीवाद, फासीवाद.... जिनमें कोई न कोई एक अच्छा लक्ष्य रहता था.... किसी में गरीब के कल्याण का तो किसी में अमीर के कल्याण का तो कहीं राज्य को शक्तिशाली बनाने का। किंतु आतंकवाद में एक भी कोई अच्छा लक्ष्य नहीं है। सिर्फ आतंक फैलाना और मासूमों-निरीहों को अपना निशाना बनाना इसका लक्ष्य है‌। आतंकियों ने दूसरे के धर्म और देश पर जितना बर्बर हमला किया है,उतना ही निर्मम हमला अपने देश और अपने धर्म पर भी किया है।


अतः आतंकवाद के दर्शन पर मेरी स्वरचित कविता के एक-एक शब्द को पढ़ें ही नहीं, गुनें भी। शिक्षा और शिक्षक की सार्थकता इसी में है कि आतंकवाद के प्रति सबके मन में एक वितृष्णा का भाव जगा सके। ताकि किसी धर्म की आड़ में ये न छुप सकें......


'आतंकवाद का दर्शन'


मां की आंखें तक रही हैं ,बेटे मेरे कब आएंगे


प्रिया देख रही हैं राहें,प्रियतम कब गले लगाएंगे?


अरमान इनके मिलन के कभी न सच हो पाएंगे


आतंक की वेदी चढ़ चुके हैं, कैसे हम इन्हें बताएंगे?


आतंकवाद तू झूठ कहता है, है कोई तेरा धर्म


ना तो कोई मजहब तेरा, ना तेरा कोई कर्म।


हर वाद में आज तक मैंने लक्ष्य कुछ अच्छा पाया


तेरा ही एक वाद है जिससे मानवता शरमाया।


साम्यवाद ने गरीबों की दी थी जब दुहाई


पूंजीवाद ने अमीरों की, की थी जो अगुवाई।


फासीवाद भी राज्यशक्ति को चाहा चरम पहुंचाना


तेरे वाद ने कोई लेकिन न ऐसा तत्त्व पहचाना।


निरीह मासूमों पर तू करता अपना पौरुष प्रहार


धर्म आड़ में खोज रहा फिर भी अपना जनाधार।


किंतु धर्म का मूल संदेश तो है मानव-कल्याण


कैसे बना पाएगा तू ,वहां अपनी पहचान?


धर्मसंस्थापकों ने तो त्याग से किया धर्मारोपण


बलिदान दे स्वयं का ही वे करते बीजारोपण।


सूली चढ़कर भी ईसा ने दुश्मन की खैर माना


माफ करना प्रभु इन्हें , सत्य न इनने जाना।


मुहम्मद के संदेश को तू चला परवान चढ़ाने


मक्का से मदीना तक के कष्ट को तू क्या जाने?


हसन हुसैन को चढ़ा वेदी पर किया सब कुछ बलिदान


त्याग के इस असीम भाव से बना इस्लाम महान।


आजादी के दीवाने तुझे कहते हैं सिरफिरे


देशभक्तों के बलिदानों की देखी नहीं लकीरें।


क्या भगत सिंह ने लिया था नन्हों की कहीं जान


या अशफाकुल्ला ने किया था, कहीं नारी अपमान?


कट्टरता के हो विषवृक्ष ,अब दुनिया ने पहचाना


त्रस्त तो तेरी खुद जनता है , बाद में है बेगाना।


नारी के अधिकार को तूने यूं पैरों से रौंदा


कराह उठी है आत्मा सबकी, नरक बना घरौंदा।


सहनशीलता को अपनाकर भारत ने तुझे झेला


किंतु भाग्य ने अब तेरे को मौत के पास धकेला।


अब अतिशय को पहुंच चुका है आतंकवाद शैतान


किंतु समझकर कदम तुझे रखना होगा इंसान।


जड़ से यदि नहीं कटा तो यह वृक्ष फिर उग आएगा


समूल नाश ही इसका,मानवता को पूर्ण बचा पाएगा।


धरती जहां पर फला फूला यह नापाक हैवान


काट उसे अलग करना, होगा कर्म महान।


पोषण के सारे तत्त्वों को जला तू जब जाएगा


सांस उसी दिन मानवता को चैन से आ पाएगा।


हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब को जलना होगा


इस यज्ञ में आहुति तो सबको करना होगा।


रास्ता कहीं भटके तो फिर यज्ञ एक ऐसा होगा


मानवता की होगी आहुति आतंक पुरोहित होगा।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹