बुद्ध का मन, युद्ध का नापाक जश्न
May 13, 2025🙏बुद्ध पूर्णिमा और राष्ट्र संदेश🙏
संवाद
'बुद्ध का मन, युद्ध का नापाक जश्न'
बुद्ध का देश भारत युद्धरत्त देश के मन को समझने लगा है। 'भगवान बुद्ध ने हमें शांति का रास्ता दिखाया है।शांति का मार्ग भी शक्ति से होकर जाता है...- बुद्ध पूर्णिमा के दिन राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रधानमंत्री जी ने इस वाक्य में 'शक्ति' शब्द का प्रयोग विशेषरूप से सैन्यशक्ति के लिए किया है। सैनिक शक्ति आज के विश्व की सच्चाई है। भारत की सैन्य-शक्ति को लख-लख सलाम!!!किंतु महात्मा बुद्ध के पास इससे भी बड़ी एक शक्ति थी, जिसका नाम था-'आत्मिक-शक्ति'।
आत्मिक शक्ति के सहारे वे अंगुलीमाल जैसे खूंखार डाकू के पास बिना अस्त्र-शस्त्र के अकेले पहुंच गए। अंगुलिमाल 999 लोगों को मारकर उनके उंगलियों की माला बना चुका था। बस एक उंगली की कमी थी। अंगुलीमाल से उन्होंने कहा कि मुझे मारने से पहले तू सिर्फ पेड़ की एक डाली तोड़कर दिखा दे। अंगुलीमाल ने तो एक झटके में कई डाली तोड़ दिया। बुद्ध ने कहा कि तू सिर्फ इस डाली को जोड़कर दिखा दे। कहते हैं अंगुलीमाल सोच में पड़ गया। और उसका हृदय परिवर्तन हो गया। क्योंकि उसे समझ में आ गया-
'ध्वंस बहुत ही सहज मगर निर्माण कठिन है
पतन बहुत आसान मगर उत्थान कठिन है।'
आज के अंगुलीमाल न तो बुद्ध के सामने पड़ते हैं और न किसी सोच में पड़ते हैं।
पहलगाम घटना हो या पाक की तरफ से निर्दोष नागरिकों और रिहायशी इलाकों पर आक्रमण का मामला हो; इनके कारण जो आतंक,तनाव और मौत का आलम चारों तरफ पसर गया है , उसमें जश्न कैसे मनाया जा सकता है? यह तो सोचने की घड़ी है कि इतने महापुरुष और मसीहा इस धरती पर आए और अपना उपदेश देकर चले गए किंतु आदमी अभी भी भटक रहा है-
'हजारों खिज्र पैदा कर चुकी हैं नस्ल आदम की
ये सब तस्लीम लेकिन आदमी अब तक भटकता है।'
पाकिस्तान में सड़कों पर फूल बरसाते हुए और गाने पर नाचते हुए वीडियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि कोई शादी का माहौल है। लगता है कि या तो संवेदनाएं मर चुकी हैं या अपने भावों के सम्यक प्रकटीकरण का सलीका नहीं जानते। जब घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध के मिश्रित भाव बेकाबू हो जाए तो कभी-कभी कुछ ऐसा प्रकट होता है जो अशोभन लगता है।
महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के मारे जाने के बाद कौरव महारथियों के द्वारा जो जश्न मनाया गया या दुशासन की छाती का लहू लेकर भीम ने जो जश्न मनाया , वह सभ्यता और संस्कृति पर सवाल खड़े करता है। पहलगाम में आतंकियों ने जो किया वह तो इतनी निर्दयता और निर्ममता की मिसाल है कि आतंकियों को मानव नहीं माना जा सकता।
आतंकियों के मारे जाने पर सिंदूर मिटाने का बदला ऑपरेशन सिंदूर से जरूर मिला किंतु इस प्रयास में कोई निर्दोष नागरिक हताहत नहीं हुआ, इससे दिल का सुकून और ज्यादा बढ़ा। फिर पाकिस्तान के द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग और आक्रमण में तथा उसके जवाबी कार्रवाई में जो दोनों तरफ से सैनिकों की जानें गई, उसकी खबर सुनकर अफसोस होता है,आनंद तो कदापि नहीं; क्योंकि-
'बम घरों पर गिरे कि सरहदों पर रुहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के,जीस्त फांकों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़े या पीछे हटे, कोख धरती की बांझ होती है
फतेह का जश्न हो या हार का शोक, जिंदगी मय्यतों पे रोती है।
जंग के दौरान सैनिकों की और निर्दोष नागरिकों की जो बलि चढ़ जाती है , उनके पीछे आंसूओं में भींगे हुए मां-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी, पत्नी-परिजन पर जब निगाहें जाती हैं तो साहिर साहब के रूहानी अल्फाज़ याद आने लगते हैं।आखिर जंग खून और आग बरसाने के अलावा और क्या दे जाती है?
'जंग तो खुद ही एक मसला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी
खून और आग आज बरसेगी, भूख और ऐहतियाज कल देगी।'
आज की खबर है कि 3 वर्षों के विनाशक युद्ध के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को सीधी बातचीत का ऑफर दिया है।
हृदय परिवर्तन की यह आहट यदि सच हो और संपूर्ण हो तो कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक को जो अनुभूति हुई थी,वही अनुभूति दूसरे संवेदनशील हृदय को भी हो सकती है। इतिहास गवाह है कि सम्राट अशोक ने युद्धजनित विनाश को देखकर बौद्धधर्म ग्रहण कर दिलों को जीतने की नई मुहिम पर अपने को समर्पित कर दिया।
75 वर्षों से कश्मीर में जो खून की होली खेली जा रही है, उसमें शामिल आतंकियों के भी तो परिवार होते हैं। आतंकियों के हृदय में दुश्मनों के लिए भले ही कोई जगह न बची हो किंतु अपने परिवार के लिए तो थोड़ी जगह बची होगी। तभी तो अपने परिजनों के मारे जाने पर आतंकी सरगना हाफिज सईद ने कहा कि मैं भी मर जाता तो अच्छा होता।
क्षणमात्र को ही सही किंतु यह तो पता चला कि अपनों के बिना व्यक्ति जीना भी नहीं चाहता।संवेदना के इसी बीज को किसी बुद्ध का दर्शन अंकुरित कर देता है और हृदय परिवर्तन संभव हो जाता है।
काश! इन आतंकियों को किसी बुद्ध का दर्शन होता। अन्यथा मौतों पर जश्न मनाने का सिलसिला मानवता को इतनी दूर ले जाएगा कि उसे फिर से मानव जन्म कभी नसीब न होगा।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹