धर्म,नीति और राजनीति
May 28, 2025🙏राजनीति में नैतिकता का सवाल 🙏
संवाद
'धर्म,नीति और राजनीति'
न आंतरिक तेज और न बाहरी प्रताप फिर भी राजनीति किसी को राजनेता तेजप्रताप बना देती है और राष्ट्रीय विमर्श का नया विषय खड़ा कर देती है। "निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अहेलना करना हमारे सामाजिक-न्याय के लिए सामूहिक संघर्ष को कमजोर करता है" यह कहते हुए नैतिकता का हवाला देकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव जी ने अपने बेटे तेजप्रताप को 'लिव इन रिलेशन' के एक वायरल पोस्ट के कारण पार्टी और परिवार से निकाल दिया।
बिहार के पूर्व मंत्री तेजप्रताप कभी कृष्ण रूप धारण कर लेते हैं तो कभी शिव रूप और कभी भक्त शिरोमणि बन जाते हैं ; कभी नैतिकता का मुखौटा भी उनके चेहरे से उतर जाता है। ऐसे में धार्मिकता,नैतिकता और राजनीति को समझना जरूरी हो जाता है।
महात्मा गांधी की धार्मिकता ने राजनीति में सत्य,प्रेम,अहिंसा जैसे धार्मिक मूल्यों को प्रवेश कराया। उनके पहले व्यक्तिगत साधना के क्षेत्र में इन मूल्यों को महत्त्व मिलता था किंतु राजनीति के जीवन में इन मूल्यों का महत्व नहीं था। किंतु गांधी ने सत्याग्रह का सफल प्रयोग करके एक नई राह दिखाई।
आधुनिक राजनीति तो मैकियावेली के 'द प्रिंस' पुस्तक से प्रेरणा प्राप्त करती है। मैकियावेली यह मानता था कि झूठ-फरेब और क्रूरता के बिना राजनीति में सफलता नहीं मिल सकती। 'राजनीति रक्त संबंध नहीं जानती' जैसी कहावतें राजनीति के यथार्थ स्वरूप को प्रतिबिंबित करती है। औरंगजेब ने अपने भाइयों की हत्या करके और पिता को कैद करके सिंहासन पर कब्जा किया था। अन्य राजवंशों में भी राजनीति का यह स्वरूप दृष्टिगोचर होता था।
भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम में महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका और उनके सत्य-प्रेम-अहिंसा के सिद्धांत के सफल प्रयोग ने आधुनिक राजनीति की दशा और दिशा बदल दी।
गांधीवादियों का प्रभाव स्वतंत्रता काल के बाद भी बना रहा। गांधी के समान धार्मिकता भले ही प्रभावी अब न रही हो किंतु नैतिकता का बोलबाला बना रहा।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जब संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका तो उसमें 'राजनीति में नैतिकता का ह्रास' मुख्य कारण था। गांधीवादी जयप्रकाश जी स्वयं नैतिकता के ऊंचे मानदंड पर खरे उतरते थे। इस कारण से उनका प्रभाव इतना व्यापक हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा।
किंतु संपूर्ण क्रांति से निकले हुए नेताओं ने सत्ता में आने के बाद नैतिकता को राजनीति से अलग कर दिया। भ्रष्टाचार और व्याभिचार के आरोपों से घिरने के बावजूद ये नेता चुनाव जीतते रहे और इन नेताओं की तूती बोलती रही। इनकी छत्रछाया में अपराध और राजनीति का गठजोड़ इतना बढ़ा कि जो अपराधी पहले राजनीतिज्ञों की शरण लेते थे,वे अपराधी सीधे राजनेता बनने लगे। इस राजनीति में धार्मिकता का तो पूर्ण लोप हो ही गया, नैतिकता भी नहीं बची। हर राजनीतिक दल में अपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं की संख्या इतनी प्रभावी हो गई कि राजनीति को कीचड़ समझकर अच्छे लोगों ने इससे दूरी बना ली।
आज राजनीति में जो अच्छे से अच्छे नेता हैं उनमें नीति भले दिखाई देता हो किंतु धर्म तो एकदम दिखाई नहीं देता। धर्म का अर्थ है मन,वचन,कर्म की एकता जिस पर गांधी बहुत ज्यादा जोर देते थे। नीति है ऐसा आचरण जो दूसरों को दिखाने के लिए व्यक्ति ओढ़ लेता है। वह अंदर से अच्छा नहीं है किंतु समाज को दिखाने के लिए अच्छे रूप का प्रदर्शन कर लेता है। आज नीति के रास्ते पर भी बहुत कम राजनेता है।
इसी कारण से अन्ना के नेतृत्व में 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का आंदोलन इतना ज्यादा लोकप्रिय हुआ। किंतु ज्यों ही आंदोलनकारियों को सत्ता मिली उन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे।
आज की राजनीति गांधी जैसे धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को तो आकर्षित नहीं ही करती,थोड़े नीति-निपुण लोगों को भी आकर्षित नहीं कर पा रही है।जिस राजनीति में न धर्म हो और न नीति,वह कैसी राजनीति होगी?
धर्म,नीति और राजनीति को समझाते हुए रहस्यदर्शी ओशो कहते हैं कि 'धर्म' असली फूल है जिसकी जड़ें धरती में जितनी गहरी जाती हैं उतना ही उसकी धड़ें आकाश में उठी होती हैं। 'नीति' प्लास्टिक का फूल है जो असली तो नहीं है किंतु असली फूल से भी देखने में ज्यादा चमकदार लगती है। 'राजनीति' तो सड़ा हुआ प्लास्टिक का फूल है जिसमें असली फूलों की सुगंध तो नहीं मिलती, प्लास्टिक के फूलों की चमक भी अब दिखाई नहीं देती।
किंतु इस वास्तविकता को समझना होगा कि राजनीति हमारे जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करती है। यदि अच्छे लोग राजनीति से दूर हो जाएंगे तो बुरे लोगों के लिए जगह खाली हो जाएगा। यदि बुरे लोग सत्ता में आएंगे तो सत्ता उन्हें आसानी से भ्रष्ट कर देगी। यदि शासक का जीवन भ्रष्ट हो तो शासित का जीवन बहुत प्रभावित होगा।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹