श्वान-मन और मानव-मन
June 25, 2025🙏सीजफायर के विज्ञान पर एक चिंतन🙏
संवाद
'श्वान-मन और मानव-मन'
अभी के फायर और सीजफायर की घटना को देखकर एक कविता याद आ रही है....
'एक जगह पर कुछ कुत्ते बड़ी शांति के साथ जूठन खा रहे थे
एक दूसरे पर न भौंक रहे थे और न गुर्रा रहे थे
आश्चर्यचकित भाव से मैंने पूछा...
आप लोग आपस में लड़ते क्यों नहीं?
एक दूसरे पर झपटते क्यों नहीं??
कुत्तों का नेता बोला -
अब हमलोग आपस में नहीं लड़ते,
एक दूसरे पर नहीं झपटते
क्योंकि हम शरम के मारे हैं
लड़ने की कला में आदमी के नेताओं से बुरी तरह हारे हैं।'
सीजफायर और फायर : ये मन की दो अवस्थाएं हैं। या तो मन युद्ध करता है या युद्ध की तैयारी करता है। 'शांति' का काल राजनीतिक-मन ने तो नहीं जाना है। धर्म ने मन के पार जाने की चेष्टा की है जिसे 'अमन'/'शांति' कहते हैं।
व्यक्तित्व में मन की प्रमुखता के कारण व्यक्ति को 'मानव' की संज्ञा भारतीय संस्कृति में दी गई किंतु उसका लक्ष्य 'आत्मा' को प्राप्त करना रखा गया। 'आत्मवान' का मन नहीं रह जाता है, इसलिए अमन अर्थात् शांति उसका स्वभाव हो जाता है। 'मन' का मतलब है महत्वाकांक्षा/हिंसा/दूसरे को दबाने की चेष्टा। 'आत्मा' का मतलब है संतोष/अहिंसा/सहअस्तित्व।
भारतीय संस्कृति में राजाओं के अपने कुलगुरु होते थे। राजा महत्वपूर्ण निर्णय अपने कुलगुरु से परामर्श करके लिया करते थे। अर्थात् शांति की छत्रछाया में शक्ति कोई निर्णय लेती थी।
राजतंत्र की अपनी खूबियां थीं तो कुछ कमियां भी थीं। शांति की छत्रछाया में नहीं चलने वाला राजा अधर्म के मार्ग पर कदम बढ़ा देता था,जिससे राज्य का नाश हो जाता था।
लोकतंत्र में नेता राजा के समान आचरण कर रहा है और उसे सम्यक-परामर्श देने वाला कोई कुलगुरु नहीं रहा। इसी कारण से बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्ष शक्ति की भाषा का ही उपयोग कर रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का मन,वचन और आचरण शक्ति के उन्माद का सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण है। उन्होंने ईरान पर बम गिराने के बाद ईरान और इजराइल के बीच चल रहे संघर्ष में सीजफायर कराने की घोषणा कर दी। ऐसे व्यक्तित्व की घोषणा का जो प्रभाव होना था, वैसा ही सीजफायर चल रहा है। संस्कृत के ऋषि कहते हैं-
'क्षणे रुष्टा क्षणे तुष्टा रुष्टा तुष्टा क्षणे-क्षणे।
अव्यवस्थित चित्तानाम् प्रसादोऽपि भयंकर:।।'
अर्थात् जो व्यक्ति क्षण में कभी रुष्ट होता है, कभी तुष्ट होता है; ऐसे अव्यवस्थित चित् का कोई ठिकाना नहीं।
इसी अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हिरोशिमा नागासाकी पर एटम बम गिराकर लाखों व्यक्तियों को सेकंडों में मार दिया था। उस समय राष्ट्रपति थे-'ट्रूमैन' अर्थात् सच्चा आदमी। बम गिराने का आदेश देकर उन्होंने गहरी नींद ली और सुबह पत्रकारों को यह बताया कि बहुत दिनों के बाद अच्छी नींद आई।
इसी प्रकार से ट्रंप ईरान के परमाणु ठिकाने पर बम गिराकर नोबेल शांति पुरस्कार का दावा कर रहे हैं। भारत पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का श्रेय लेने के बाद पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुनीर के साथ डिनर डिप्लोमेसी कर रहे हैं और मुनीर उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार देने की अपील कर रहे हैं।
जिस पाकिस्तान में ओसामा छुपा हुआ था और जो आतंकियों की जन्मस्थली और शरणस्थली दोनों हैं, वैसे राष्ट्र को महान बताकर ट्रंप अपना तथा अपने राष्ट्र का चरित्र उजागर कर रहे हैं।
मुख्य प्रश्न यह है कि राजतंत्र हो या लोकतंत्र दोनों में शक्ति के उन्माद में मानव-अधिकारों की बलि चढ़ाई जाती है। गाजा पट्टी में हजारों बच्चे मारे गए और सैकड़ों बच्चे अपाहिज हो गए। एनेस्थीसिया के अभाव में किए जा रहे ऑपरेशन के कारण दर्द से उनकी मौत हो जा रही है। लाखों लोग बेघर हो गए और नरक की जिंदगी जी रहे हैं। 'तथाकथित लोकतंत्र' के इस युग में जहां खाने को ब्रेड नहीं पहुंच रहे हैं, वहां पर बम और मिसाइल खूब पहुंच रहे हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि यही 'लोक' तंत्र के साथ युद्ध के पक्ष में खड़ा हो जाता है। नेता कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं राष्ट्र के नाम पर जनता को अपने साथ खड़ा कर लेते हैं।
धर्म और राष्ट्र का प्रश्न गौण है, मूलप्रश्न मानवाधिकारों का है। मानवाधिकार के प्रश्न को प्रमुख बनाने और उस पर जनमत निर्माण का कार्य मीडिया का है। यह मीडिया नेताओं के बयान और मिसाइलों के गुणगान में लगी हुई है।
युद्ध के समय जितना जनता का संसाधन बर्बाद हुआ, उससे भी ज्यादा सीजफायर के समय सुरक्षा के नाम पर वार की तैयारी में लगा दिया जाएगा।
मानव के मूल में जो लड़ने की प्रवृत्ति है, उसको खत्म किए बिना शांति संभव नहीं है। भारत ने अपने गुरुकुलों में प्रकृति के शांत वातावरण में आत्मोपलब्ध लोगों के साथ नई पीढ़ी को शिक्षित करने की व्यवस्था की थी। विश्वामित्र के आश्रम में राम का प्रशिक्षण हुआ और वशिष्ठ जैसे कुलगुरु की छत्रछाया में राजकाज चला तो उनकी शक्ति सृजन में लगी, विध्वंस में नहीं।
आज विज्ञान की शक्ति का दुरुपयोग राजशक्ति कर रही है। परिणाम में परमाणु वैज्ञानिक और आम नागरिक मारे गए ,राजनेता बचे रहे। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से किसी ने पूछा कि तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना के बारे में कुछ बताइए। आइंस्टीन ने कहा कि तीसरे विश्वयुद्ध के बारे में तो कुछ नहीं बता सकता किंतु चौथे विश्वयुद्ध के बारे में बता सकता हूं कि वह कभी भी नहीं होगा। क्योंकि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो कुछ भी बचेगा ही नहीं। समस्त अस्तित्व को खत्म करने की इतनी बड़ी तैयारी हो चुकी है।
इस समय लोक और तंत्र दोनों को शांति की साधना के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है।शांति सीजफायर से नहीं आती बल्कि मन के पार जाकर आत्मा को उपलब्ध करने से आती है। एटम शक्ति की खोज में जाने से पहले आत्मशक्ति की खोज भारत का मूल संदेश रहा है, अन्यथा शक्ति ही इस संसार को नष्ट कर देगी।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹