🙏शुभांशु की साधना को शुभकामना🙏


संवाद


'आंखें अंतरिक्ष की ओर'


शुभांशु कल तक एक अपरिचित नाम थे।आज अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन(ISS) में पहुंचकर सबसे परिचित नामों में से एक हो गए हैं। उनके कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी की निगाहें आकाश की ओर उठ गई हैं।


पृथ्वी पर सभी जन्म लेते हैं किंतु उनमें से कुछ गिने-चुने मानव अपने मन की अद्भुत शक्तियों को पहचानकर उस जगह पहुंच जाते हैं,जहां से हर मन में एक सपना जग जाता है।


अंतरिक्ष में पहुंचने का सपना शुभांशु जैसे अनेक बच्चों की आंखों में भी किसी ने दिखाया होगा। उसका अपने आप में बहुत महत्व होता है। कलाम साहब अपने उस शिक्षक अय्यर साहब को बहुत आदर के साथ याद करते हैं जिन्होंने क्लास में पंछियों के बारे में पढ़ाने के बाद समुद्र के किनारे ले जाकर उड़ते हुए पंछियों का दर्शन भी कराया। उस दिन कलाम नामक बच्चे के हृदय में उड़ने की तमन्ना जग गई जिसने उस बच्चे को भारत रत्न कलाम बना दिया।


'परों में शक्ति हो तो नाप लो उपलब्ध नभ सारा


उड़ानों के लिए पंछी गगन मांगा नहीं करते


जिसे मन प्राण से चाहा निमंत्रण के बिना उसके


सपन तो खुद-ब-खुद आते नयन मांगा नहीं करते।'


सपने तो बहुतों को दिखाए जाते हैं किंतु अपने सपने को सच साबित करने हेतु दिन-रात बहुत कम लोग जागा करते हैं।


चार दशक के बाद भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा जी को अपने उत्तराधिकारी शुभांशु शुक्ला को शुभकामना देने का सौभाग्य मिला। इसमें उन्होंने कहा कि 'खिड़की से बाहर झांकना मत भूलना' जिसका तात्पर्य है-"अपनी सीमाओं के पार देखने की दृष्टि रखना"।दुर्लभ क्षणों में से यह एक क्षण है जो कि आगे भारतीयों को अंतरिक्ष में जाने का ही नहीं बल्कि वहां बसने का भी एक सपना जगाएगा।


यह विशेष महत्वपूर्ण इसलिए है कि कुछ लोग पृथ्वी पर भी कीचड़ में धंसते जा रहे हैं, अन्यथा आतंक,व्यभिचार और भ्रष्टाचार चारों ओर इतना नहीं दिखाई देता। लेकिन कुछ आत्मा ऐसी होती हैं कि कीचड़ में जन्म लेकर भी कमल के समान खिल जाती है‌ और कीचड़ से इतना ऊपर उठ जाती है कि विश्वास नहीं होता। लेकिन


'खोल आंख जमीं देख, फलक देख फजा देख


मशरिक से उभरते हुए सूरज को जरा देख।'


इस मुकाम तक पहुंचने के लिए शुभांशु की साधना को हमें अपनी आंखों में बसाना होगा। भारतीय संस्कृति कहती हैं कि हम अपने संकल्प से बड़े होते हैं अथवा छोटे -'सर्व: स्वसंकल्पवशात् लघुर्भवति वा गुरु:'


अपने संकल्प को पूर्ण करने के लिए शुभांशु ने तन,मन और आत्मा की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। गुरुत्वाकर्षण के पार जो 'तन' वायुमंडल के भारी दबाव को सहन कर सके, अकेले में भी जो 'मन' एकांत की ताजगी महसूस करते हुए एकाग्र रह सके और जो आत्मा परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण कर अज्ञात में छलांग लगा सके वो ही इस दुर्लभ ऊंचाई पर पहुंच पाता है। तब वह भारतीय ऋषियों के समान घोषणा करता है-'अहम् ब्रह्मास्मि' (मैं ब्रह्म हूं)।


विज्ञान ने अब एक्सपेंडिंग यूनिवर्स (expanding universe)की अवधारणा को माना है जिसे सदियों पहले 'ब्रह्म' और 'ब्रह्मांड' शब्द के द्वारा ऋषि चेतना ने अभिव्यक्त कर दिया था। साधारण शब्दों में इसका मतलब है कि यह ब्रह्मांड लगातार फैलता जा रहा है। 'अहम्' भी "ब्रह्म" का एक अंश है जो फैले तो नए ज़हां नए आसमान को पा जाए।जैसे-जैसे खोजें आगे बढ़ रही हैं वैसे-वैसे पता चल रहा है कि


'सितारों के आगे जहां और भी हैं


अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।


इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा


कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं।।'


शुभांशु में "शुभ" (शुभ) और "अंशु" (सूर्य की किरणें) का संयोजन है।'शुभांशु' का अर्थ है 'सूर्य की शुभ किरणों को धारण करना'। जीवन में कितना भी अंधेरा हो, किंतु महत्वपूर्ण यह है कि आंखें देखती क्या है? यदि आंखें सूर्य की तरफ उठी हुई है तो उसकी एक किरण भी एक दिन कदम दर कदम चलते हुए सूर्य तक पहुंचा देगी।


हम सबकी परमात्मा से प्रार्थना होनी चाहिए कि शुभांशु अपने मिशन में पूर्ण कामयाब होकर सकुशल लौटें और अंधेरे में भटकती हुई आत्माओं को जीवन में शुभ की ओर और सूर्य की ओर आंखें उठाने की प्रेरणा देते रहें।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹