🙏गोस्वामी तुलसीदास जी और मुंशी प्रेमचंद जयंती की शुभकामना🙏


संवाद


'महापुरुषों की जयंती का मूल संदेश'


31 जुलाई को आज हम गोस्वामी तुलसीदास जयंती और मुंशी प्रेमचंद जयंती मना रहे हैं।रीलवाली पीढ़ी को रियल लाइफ की संवेदनाओं से परिचित कराने वाले महापुरुषों के जीवन और कृति से परिचित कराने के अवसर के रूप में इसे लिया जाना चाहिए। आज कितने बड़े दुर्भाग्य की बात है कि गांव-गांव विद्यालय और महाविद्यालय खुलते जा रहे हैं किंतु पुस्तकों से और पढ़़ने की आदत से नई पीढ़ी दूर होती जा रही हैं।


          खासकर आदिवासी बहुल बांसवाड़ा क्षेत्र में पुस्तक के नाम पर पासबुक और पढ़ने के नाम पर रियल लाइफ की चुनौतियों को पढ़ने की अपेक्षा रील देखना प्रमुख हो गया है। परिणामस्वरुप नई पीढ़ी व्यसन-वासना का शिकार होती चली जा रही है।


             परिवार के संस्कार में और अच्छी पुस्तकों के प्यार में मुझे जीवन में बहुत कुछ मिला। पिताजी सैनिक थे ,फिर भी सुबह उनको रामचरितमानस के साथ बैठे हुए देखता था।देखता था कि युद्ध का अभ्यासी सैनिक पढ़ने का अभ्यास करते रहता है जिसके कारण उनका जीवन शांति और प्रेम से भरता जा रहा है। तब मेरे मन में रामचरितमानस के प्रति श्रद्धा का जन्म हुआ।


       बचपन में मुंशी प्रेमचंद की ईदगाह कहानी शिक्षक ने पढ़ाई,फिर उसको कई बार पढ़ा। अनजाने में हामिद की वह मासूम चाह दिल को छू गई,जिसके कारण वह अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है जबकि उसके अन्य साथी दूसरे खिलौने खरीदते हैं। फिर प्रेमचंद से प्रेम बढ़ता गया।


                श्रद्धा और संवेदना के बिना जीवन में निरर्थकता बढ़ती चली जाती है। आज सब कुछ होते हुए भी अवसाद और आत्महत्या की घटना बढ़ रही है तो उसके मूल में श्रद्धा और संवेदना का लुप्त होना प्रमुख कारण है। श्रद्धा और संवेदना को जगाने के लिए महापुरुषों की जीवनी और महान पुस्तकों से प्रेम ही एकमात्र उपाय है।


                गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में रामचरितमानस लिखकर और मुंशी प्रेमचंद ने लोक की वेदना को अपनी लेखनी का आधार बनाकर एक ऐसी थाती जगत को सौंपी हैं, जिससे उऋण होना मुश्किल है। लेकिन ऋषिऋण को चुकाने के लिए पुस्तकों की संस्कृति और स्वाध्याय की प्रवृत्ति का होना जरूरी है। आज के विद्यार्थी जीवन से पुस्तकों की संस्कृति और स्वाध्याय की प्रवृत्ति को गायब होते देखकर मुझे लगता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा से हम दूर जा चुके हैं।


       राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। जब जन-जन महान पुस्तकों से प्रेम करना शुरू करेगा और स्वाध्याय के द्वारा उनके संदेशों को जीवन में उतारना शुरू करेगा तभी भारत विश्वगुरु बनने के पथ पर अग्रसर हो सकेगा। पुस्तकों की संस्कृति और स्वाध्याय की प्रवृत्ति को प्रारंभ करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती और मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती से अधिक बड़ा अवसर दूसरा कहां मिल सकता है? इन महापुरुषों की जयंती हमें एक ही संदेश देती है-


'कुछ लिखकर सो , कुछ पढ़कर सो


तू जिस जगह जागा सवेरे, उस जगह से बढ़कर सो।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹