विद्यार्थ-शिक्षक-अभिभावक संबंध
August 10, 2025संवाद
'विद्यार्थ-शिक्षक-अभिभावक संबंध'
बांसवाड़ा के पीएम श्री राउमावि बड़ोदिया में देर से विद्यालय आने पर सरकारीशिक्षक के द्वारा विद्यार्थी को डांटे जाने पर अभिभावक ने क्लासरूम में आकर शिक्षक के साथ मारपीट की। विद्यार्थी-शिक्षक-अभिभावक का संबंध आज जिस तरह से कलुषित हो रहा है, वह संबंध कभी बहुत भावनात्मक हुआ करता था।
प्रोफेसर बनने पर एक दर्शनशास्त्री ने सबसे पहले अपने स्कूल के शिक्षक झम्मनमास्साब को याद किया क्योंकि वे फसल पढ़ाने के लिए खरीफ,रबी,जायद फसलों के बीज अपने रुमाल में बांधकर लाया करते थे और मिट्टी के बारे में जानकारी देने के लिए विद्यार्थियों को खेत में ले जाया करते थे। एक आईजी साहब ने बताया कि पिता ने मेरी शादी पक्की कर दी और समारोह की तैयारी पूरी कर ली किंतु उस समय मैं आरपीएससी की तैयारी में व्यस्त होने के कारण शादी नहीं करना चाहता था। कोई उपाय नहीं देखकर मैंने अपने स्कूल शिक्षक को अपनी पीड़ा बताई और उनके समझाने पर मेरे पिताजी और परिवारवाले शादी समारोह टालने पर राजी हो गए।
शिक्षक का विद्यार्थी पर और अभिभावक पर यह जो जादू चलता था,यह बहुत पुरानी बात नहीं है। बस शिक्षक से उस समय सिर्फ पढ़ाने का काम लिया जाता था। सादगी, सेवा और समर्पण की जीती जागती प्रतिमूर्ति ज्ञानसंपन्नशिक्षक होता था। जब से बहुत सारे गैरशैक्षिककार्यों में शिक्षक को उलझा दिया गया तब से उसके सारे सद्गुण कम होने लगे और विद्यार्थी, अभिभावक के साथ समाज की नजरों में भी उसकी प्राचीन गौरव-गरिमा नहीं रही।
कभी शिक्षक की डांट का पता चलने पर अभिभावक अपने बच्चे को और पीटता था क्योंकि उसका विश्वास था कि पढ़ाई से दूर होने पर ही शिक्षक विद्यार्थी को डांटता है-
'जिसके हृदय जितना समीप है वही दूर जाता है
और क्रोध आता उस पर ही जिससे कुछ नाता है।'
आज की व्यवस्था ने यह गहरा नाता तार-तार कर दिया। विद्यार्थी के मन में यह बात घर करने लगी कि शिक्षक मुझे डांटनेपीटनेवाला कौन होता है और अभिभावक के मन में भी दुर्भाग्य से यह बात बैठ गई है कि मेरे बच्चे को डांटनेपीटनेवाला शिक्षक कौन होता है? महादुर्भाग्य यह हुआ कि बदलती मानसिकता वाले परिवेश में समर्पित शिक्षक भी तटस्थ होने लगे जिसके परिणामस्वरूप नई पीढ़ी साक्षात् गुरु से तो दूरी बना रही है और गूगल गुरु से नजदीकी बढ़ा रही है। नतीजतन अश्लील और हिंसक साइट्स देखे जाने के कारण व्यभिचार और दुराचार समाज में बढ़ते जा रहे हैं। फिर वही अभिभावक अपने बच्चे को राह भटकते पाकर डांटने से लेकर पिटाई तक खूब करता है। बस शिक्षक पराया हो गया।
भारतीय संस्कृति की गहरी समझ यह थी कि मां-बाप तन को जन्म देते हैं, मन का निर्माण तो शिक्षक करता है। किसी को मानव बनाने के लिए शिक्षक जो कुशल उपाय करता है, वह मां-बाप नहीं कर सकते। आज का दुर्भाग्य यह है कि मां-बाप ही नहीं विद्यार्थी भी मन के निर्माण करने वाले इस शिक्षक से सिर्फ परीक्षा में आने वाली कुछ सूचना लेना चाहते हैं जिससे थोड़ा ज्यादा नंबर आ जाए।
शिक्षकों पर एक तरफ सरकारी कर्मचारी होने का भार है, दूसरी तरफ विद्यार्थी के साथ बढ़ती दूरी का आत्मधिक्कार है, तीसरी तरफ अभिभावक व समाज का तिरस्कार है और चौथी तरह आदर्श गुरु बनने का सर पर भूत सवार है। जिस परंपरा में गोविंद से भी बड़ा गुरु को बताया गया हो,उस परंपरा में शिक्षक जब शिक्षालय के कक्षा-कक्ष में विद्यार्थी और अभिभावक के द्वारा सही बात बताने की जिद में आक्रमण का शिकार होने लगे ; तब इस शिक्षा व्यवस्था, समाज और सरकार का भगवान ही मालिक है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹