परम स्वतंत्रता की प्रतीक कृष्णचेतना
August 15, 2025🙏स्वतंत्रता के शिखर पुरुष श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की शुभकामना🙏
संवाद
'परम स्वतंत्रता की प्रतीक कृष्णचेतना'
स्वतंत्रता का सम्यक रूप हमें कृष्णचेतना में देखने को मिलता है। कृष्ण का 'स्व' इतना विकसित हो चुका था कि जिंदगी की कोई भी परिस्थिति हो,उसमें उनके अंतरमन से साफ और स्पष्ट संदेश उन्हें मिलता रहा। यही कारण था कि बिना किसी दुविधा के जिन उंगलियों ने बांसुरी बजाई, उन्हीं उंगलियों ने सुदर्शन चक्र भी उठाया। जरूरत पड़ी तो वे रण छोड़कर भाग गए और रणछोड़दासजी कहलाए; और फिर जरूरत आ पड़ी तो रण को छोड़ने के लिए उत्सुक अर्जुन को रणभेरी बजाने को तैयार कर दिया। कभी गोपियों के वस्त्र चुरानेवाले कृष्ण द्रौपदी के चीरहरण पर चीर और मान दोनों बचाने के लिए आ जाते हैं।
कृष्ण के संपूर्ण जीवन को हम देखें तो एक सजग और जागरूक चेतना देखने को मिलती है। वह सजगता और वह जागरूकता ही स्वतंत्रता के प्राप्त बीज को वृक्ष बनाने में हमारी मदद कर सकता है। व्यक्ति की स्वतंत्रता की बात हम करते हैं किंतु कृष्ण तो प्रकृति की स्वतंत्रता के भी प्रेमी ही नहीं पूजक भी थे। तभी तो उन्होंने ब्रजवासियों को कहा कि इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा किया जाए क्योंकि इस पर्वत से हमारे पशुओं के लिए चारा और हमारे लिए कंद,मूल,फल से लेकर लकड़ियां और जल तक मिलता हैं। इससे इंद्र भगवान नाराज हो गए और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी तब कृष्ण ने अपनी उंगलियों पर सभी के सहयोग से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। सात दिनों के बाद इंद्र ने माफी मांग ली। इसमें संदेश यह छुपा है कि कितना भी बड़ा संकट हो,कुशल नेतृत्व और सामूहिक प्रयास से उसका समाधान निकल आता है।
इसी प्रकार कालिया नाग के कारण यमुना प्रदूषित हो गई थी और लोगों का जीना मुश्किल हो गया था। तब कृष्ण ने कालिया नाग के प्रदूषण से यमुना को मुक्त कराया।
आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि व्यक्ति और प्रकृति का संबंध छिन्न-भिन्न हो गया है जिसके कारण संस्कृति तो हम विकसित नहीं कर पाए उल्टे विकृति बढ़ती जा रही है। परिणाम में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट से मानव का अस्तित्व खतरे में है।
कृष्ण चेतना का स्पष्ट संदेश है कि स्वचेतना को इतना विकसित करो कि वह चेतना प्रकृति के कण-कण में दिखाई देने लगे। उसी चेतना के कारण भारतीय संस्कृति विकसित हुई थी जिसमें पर्वत की पुत्री पार्वती को हम मां कहते हैं जिनका विवाह शिव के साथ हुआ था। उस शिव का निवास कैलाश पर्वत पर है और वे पशुपति नाथ कहलाते हैं। हमने नदियों को माता कहा। प्रकृति पूजक इस देश में जब पर्वत जान लेने लगें और नदियां विनाश करने लगे तो हमें समझना चाहिए कि कृष्ण चेतना से हम दूर हो गए हैं। उस कृष्ण चेतना को फिर से जन्म देने की और बड़ा करने की जरूरत है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹