श्वान और इंसान का भावनात्मक संबंध
August 21, 2025🙏श्वान के मुद्दे पर क्यूं बंटा इंसान?🙏
संवाद
'श्वान और इंसान का भावनात्मक संबंध'
भारत में आज श्वान को लेकर इंसान दो वर्गों में बंट गया है। एक तरफ श्वान प्रेमियों का कहना है कि आदिकाल से इंसान का सबसे वफादार जीव श्वान ही रहा है तो दूसरी तरफ श्वानों से खार खाए हुए वे लोग हैं जो श्वानों के द्वारा इंसानों को काटे जाने से बढ़ते रेबीज के खतरे और मौतों के आंकड़े को देखकर श्वान को इंसान से अलग किसी शेल्टर होम में या अन्यत्र करने की योजना बना रहे हैं।
विवाद के मूल में 11 अगस्त का दिया गया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का निर्णय है कि दिल्ली एमसीडी के इलाके से श्वानों को पकड़कर अलग किसी शेल्टर होम में डाला जाए और यदि कोई बाधा उपस्थित करे तो कोर्ट की अवमानना का केस उस पर लगाया जाए।
न्याय के मूल में सभी के प्रति करुणा सबसे प्रमुख तत्त्व होता है किंतु न्यायालय के इस निर्णय में करुणा का मूल तत्त्व गायब था।
इंसान की सुरक्षा के लिए श्वान को अलग-थलग करने की इस मानसिकता के पीछे यह सोच है कि इंसान साध्य है और शेष सभी को इंसानों के लिए साधन बनाया जा सकता है। लेकिन भारतीय संस्कृति की गहरी दृष्टि कहती है कि- 'आत्मवत् सर्वभूतेषु य: पश्यति स पंडित:' अर्थात् सभी प्राणियों में जो स्वयं की आत्मा के समान देखता है,वही पंडित है।
यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय इस विवाद पर पुनर्विचार के लिए तैयार हो गया है। बढ़ते विवाद का मूल कारण पश्चिमी और पूर्वी दृष्टिकोण का अंतर है। पश्चिम के दर्शन ने इंसान को साध्य माना और सभी पशु-पंछियों के साथ पेड़-पौधों का भी साधन की तरह इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप प्रकृति के विनाश से मानव के भी विनाश के दृश्य में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। पूर्व के दर्शन ने व्यक्ति और प्रकृति के घनिष्ठ संबंध को पहचाना और प्रकृति-पूजक व्यक्तित्व का निर्माण किया। तभी तो हम धरती को माता, आकाश को पिता कहते है; वायु ,जल,अग्नि को देव के रूप में पूजते हैं। सूक्ष्म घास के तिनके से लेकर विशाल वट वृक्ष तक में दिव्यता का दर्शन करते हैं। पशुपतिनाथ हमारी संस्कृति में देवों में भी महादेव हैं और उनकी अर्धांगिनी का नाम पार्वती हैं जो हिमालय पर्वत की पुत्री हैं।
पुनर्जन्म की धारणा को मानने वाली भारतीय संस्कृति मानती है कि हम सभी का जन्म अनेक योनियों में हुआ है। मानव जन्म संचित पुण्यों का परिणाम है। भावना और संवेदना का इंसान चरम शिखर है,इसी कारण पाषाण को भी अपनी भावना से इंसान भगवान बना देता है। वह इंसान किसी के प्रति क्रूर कैसे हो सकता है?महाभारत की कथा में तो युधिष्ठिर के साथ उनका कुत्ता ही स्वर्ग में प्रवेश कर पाया। द्रौपदी सहित अन्य सारे पांडव किसी मानवीय कमी के कारण स्वर्ग से वंचित हो गए। धर्मराज के साथ धर्म का प्रतीक कुत्ता ही मानवीय कमजोरियों का अतिक्रमण कर पाया।
श्वान और इंसान के बीच के बढ़ते विवाद को संवाद में तभी बदला जा सकता है जब हम भारतीय संस्कृति की मूल दृष्टि को समझें। 'पहली रोटी गाय की, अंतिम रोटी कुत्ते की' कहावत को जन्म देनेवाली संस्कृति में श्वान आदिकाल से ही इंसानों के साथ रहा और एक रोटी के बदले उसने इंसानों की सुरक्षा के लिए अपनी जान तक दी है। आज यदि वही श्वान हिंसक बन रहा है तो श्वान और इंसान के परस्पर बदलते संबंधों पर गौर किया जाना चाहिए। श्वानों की संख्या बढ़ने से यदि इंसानों की मुसीबतें बढ़ रही है तो श्वानों के बधियाकरण का उपाय करके उनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। इंसानों के घर की बची-खुची रोटी पर पलनेवाला श्वान जो सुरक्षा देता है और साथ देता है, वह सुरक्षा और साथ यदि नहीं रहा तो जीवन में अकेलापन तथा अवसाद और बढ़ता जाएगा।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹