🙏शिक्षा के हालात पर उदाहरण सहित एक विमर्श🙏


संवाद


'गलतियों का जिम्मेवार कौन?'


एक आवेदनपत्र में इक्कीस गलतियां और वह भी बी.ए. अंतिम वर्ष के विद्यार्थी की ; यह शिक्षा के हालात के बारे में बहुत कुछ कहता है। शैक्षिक दृष्टिकोण से पिछड़े हुए बांसवाड़ा जिले में वर्तनी अशुद्धि एक समस्या है किंतु समस्या इतना विकराल रूप ले चुकी है कि इस विषय पर शिक्षा-जगत ही नहीं बल्कि सभी को गहन विचार-विमर्श करना चाहिए।


           गलतियों से भरे उस आवेदनपत्र को मेरे द्वारा सोशल मीडिया पर डाले जाने के बाद उसे देखकर-पढ़कर समाज से दो प्रकार की प्रतिक्रिया आई-पहली कि आवेदनपत्र सोशल मीडिया पर नहीं दिखाना चाहिए दूसरी कि इसमें विद्यार्थी का दोष नहीं है, दोष उसकी पारिवारिक और अकादमिक पृष्ठभूमि का है।


          पहली प्रतिक्रिया के संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी समस्या को छुपाकर रखने पर वह समस्या विकराल बनती चली जाती है। प्राचार्य के रूप में जो भी आवेदनपत्र मेरे सामने आता था,मैं उसमें चार-पांच गलतियां विद्यार्थी को बता दिया करता था किंतु जब 21 गलतियां मुझे इस आवेदनपत्र में दिखाई दी तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। अंत में जब मैंने देखा कि विद्यार्थी ने अपना नाम भी अशुद्ध लिख रखा है तो बाकी के सारे ब्योरे हटाकर समस्या को सार्वजनिक करना शिक्षाहित में मुझे उचित लगा।


           जहां तक दूसरी प्रतिक्रिया की बात है कि विद्यार्थी की पारिवारिक और अकादमिक पृष्ठभूमि ही जिम्मेवार है, विद्यार्थी नहीं; इस संबंध में भारतीय ज्ञान परंपरा मानती है कि विद्या का प्रारंभिक बिंदु जिज्ञासा है। जानने की इच्छा विद्यार्थी को विद्यालय ले जाती है। विद्या में ग्रहण करने का भाव प्रमुख होता है। बच्चा भी कई प्रकार का प्रश्न पूछता रहता है क्योंकि उसमें जानने की इच्छा देकर भगवान ने भेजा है। स्कूल में एक कविता पढ़ी थी-'मां! फिर क्या होगा उसके बाद..' जिसमें बच्चा प्रश्न पर प्रश्न करता जाता है। अंत में उसके प्रश्न से परेशान होकर कवि लिखता है- "है अनंत का तत्व प्रश्न यह,फिर क्या होगा उसके बाद?"


       इसी जिज्ञासा के भाव से विद्यार्थी आगे बढ़ते जाता है। जब विद्यार्थी ने महाविद्यालय में भी दो वर्ष की पढ़ाई कर ली तब भी वह उन गलतियों को कर रहा है जो विद्यालय में ही सुधार कर लेनी थी, तब इसका मतलब है कि वह विद्यार्थी होने की अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा है। डिग्री में तो उसकी रुचि है तभी डिग्री बढ़ती जाती है किंतु विद्या में उसकी रुचि नहीं है,इसलिए अशुद्धियां ज्यों की त्यों बनी रहती हैं।


           यही विद्यार्थी मनोरंजन के लिए मोबाईल पर कई  घंटे बिताता है, वहां रील्स देखने से लेकर रील्स बनाने तक सब कुछ कैसे सीख जाता है? यहां के विद्यार्थी मोबाईल पर बहुत ज्यादा समय बिताते हैं और बहुत प्रकार के एप्लीकेशंस सीख जाते हैं। इसके पीछे मूल तत्त्व जिज्ञासा ही तो है।


           शिक्षा की परिस्थिति और मन:स्थिति के निर्माण में विद्यार्थी के साथ शिक्षक,समाज और सरकार की भी भूमिका होती है। इसमें शिक्षक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। किंतु यदि शिक्षक को सरकारी आदेश से गैरशैक्षिक-कार्य में उलझा दिया जाए और विद्यार्थी जिज्ञासाविहीन हो तथा उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि दीन-हीन हो और समाज भी इस संबंध में उदासीन हो तो शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण कार्य उपेक्षित हो जाता है जिसका परिणाम योग्यताविहीन पीढ़ी के रूप में हम पाते हैं।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस संबंध में कहती हैं-


१. गैर शैक्षिक कार्य से शिक्षकों को मुक्त रखा जाए।


२. शिक्षा-संस्थान अध्ययन-अध्यापन का केंद्र बने।


३.भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रमुख घटक ज्ञान,विज्ञान एवं जीवन-दर्शन का विशेष रूप से प्रचार-प्रसार किया जाए।


४.परंपरागत ज्ञान के साथ कौशल विकास पर जोर दिया जाए।


                     जिन अच्छे प्रावधानों के लागू करने से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' के संबंध में जनमत सकारात्मक सोच वाला बनता, उसको लागू नहीं किया जा रहा। सबसे पहले उन प्रावधानों को लागू किया जा रहा है जिनसे 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' के संबंध में नकारात्मक अवधारणा ज्यादा बनती जा रही है;उदाहरण के तौर पर सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली। सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली में अनेक खूबियां हो सकती हैं किंतु इसके लागू किए जाने के बाद हकीकत यह है कि गैर शैक्षिक कार्यों के बोझ तले दबा शिक्षक पढ़ाई कराने के बदले सिर्फ परीक्षा कराने में लगा दिया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो विद्यालय या महाविद्यालय या विश्वविद्यालय कार्यालय में तब्दील हो गए। इससे एक तरफ नई पीढ़ी शिक्षा से दूर जा रही हैं तथा अनेक व्यसनों का शिकार बन रही हैं और दूसरी तरफ शिक्षकों की गौरव-गरिमा गिरती जा रही है। नई पीढ़ी हमारे राष्ट्र की जिम्मेदार नागरिक बने, इसके लिए जरूरी है कि विद्यार्थी शिक्षासंस्थान में नियमित रूप से अपनी क्लास में आएं


और राष्ट्रनिर्माता शिक्षक सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने के काम में अपना समय और ऊर्जा लगाए।


'घर में अंधेरा बहुत है और प्रकाश के नारे गूंजते हैं


दिन में भी जानबुझकर हम खुली आंख सोते हैं।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹