न शिष्य न गुरु सिर्फ संवाद
September 6, 2025🙏अनंत चतुर्दशी की शुभकामना
अक्षर के देवता गणेशजी के मंडप में आज सूनापन होगा क्योंकि गणेश जी के विसर्जन का आज दिन है। किंतु जरा ध्यान से सोचें तो पाएंगे कि 'अक्षर' का अर्थ होता है-न क्षरति इति अक्षर अर्थात् जिसे नष्ट न किया जा सके। अक्षर के देवता की आराधना तो अनंत होती है जो कभी खत्म नहीं होती। इसीलिए भारतीय संस्कृति में अक्षर के आराधक सतत संवाद बनाए रखते हैं जिसे हमारी परंपरा में 'गुरु-शिष्य संवाद' कहते हैं।🙏
'न शिष्य न गुरु सिर्फ संवाद'
लोग पूछते हैं कि शिष्य-गुरु संवाद केंद्र क्या है? जीवन भर विद्यार्थी बने रहने की कला सिखानेवाली संगति का दूसरा नाम शिष्य गुरु संवाद केंद्र है-'
'डूबा हुआ है सर को गरेबां में डाल के
उड़ता मगर है खोले हुए पर ख्याल के।'
26.8.1996 को जब मैंने श्री गोविंद गुरु कॉलेज बांसवाड़ा में ज्वाइन किया था, तो इसके पहले बांसवाड़ा का नाम भी नहीं सुना था।कॉलेज प्रवक्ता के रूप में अन्य नए-नए शिक्षकों की तरह पढ़ाने की मुझमें काफी ललक रहती थी। यह ललक मुझमें कुछ ज्यादा इसलिए थी कि मेरी जिंदगी खेल मैदान में बीती थी।
घर के परिवेश के साथ अपने शिक्षकों और सीनियर्स के कारण पढ़ाई की दुनिया में सफलता मिल गई। श्री ध्रुवकांत ठाकुर (वर्तमान में मेरठ के डीजी), डॉ अरुण कुमार सिंह (प्रिंसिपल), श्री लीलानंद झा (रिलीजियस प्रीचर)जैसे लोगों ने एक खिलाड़ी को पढ़ाई की दुनिया में आगे बढ़ा दिया।ये सभी मेरे गुरु होने के बावजूद मित्रवत व्यवहार करते थे। पारस पत्थर के संजोग से जैसे लोहा सोना बन जाता है,वैसा ही इन सभी के सान्निध्य से मेरा जीवन बदल गया।लेकिन मैं जानता था कि कॉलेज में पढ़ाने के लिए मुझे स्वयं बहुत पढ़ना पड़ेगा।
घर से दूर बांसवाड़ा में मेरा कोई नहीं था तो सारा समय क्लास में और घर पर का शेष समय विद्यार्थियों और पुस्तकों के साथ बीतता था। फिर डॉ.अंजना रानी,प्रवक्ता दर्शनशास्त्र से मुलाकात हुई और UPSC-RAS की परीक्षा देने हेतु मैत्री भी हुई। पढ़ने- पढ़ाने के माहौल में विद्यार्थियों के साथ रविवार को सुबह 6:00 से 9:00 बजे तक नियमित संवाद शुरू हुआ। जिसे 'शिष्य-गुरु संवाद केंद्र' नाम दिया गया। नए-नए विषयों पर चर्चा से, नए-नए प्रश्न उभरते गए और उनके उत्तर खोजने के क्रम में पुस्तकों से मैत्री होती चली गई।
व्यक्ति को जीवन में जो मिला होता है,वही जगत को नए रुप में लौटाता है। मेरा सौभाग्य रहा कि निःशुल्क और निःस्वार्थ पढ़ानेवालों का मुझे संग मिला और उनका ऋषिऋण लौटाने के लिए शिष्य-गुरु संवाद केंद्र का आधार मिला। शिक्षक के रूप में बांसवाड़ा में आया हुआ व्यक्ति अपने खेल जीवन को भूल कर विद्यार्थी के जीवन में रम गया।
दर्शनशास्त्र विषय से प्रेम होने के कारण और अपने घर- परिवार, शिक्षकों और साथियों के प्रति हृदय से भरे होने के कारण आज भी मुझे लगता है कि शिक्षक होना बहुत बड़ी उपलब्धि और सौभाग्य है। विद्यार्थियों के जीवन से जुड़ना और उनसे बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। उन्हीं विद्यार्थियों में से एक श्री प्रमोद ताबियार जी (प्रिंसिपल) पिछले 25 सालों से प्रत्येक शिक्षक दिवस के दिन माला और मिठाई लेकर सपरिवार अपना आभार प्रकट करने आते हैं तो अपने शिक्षक होने की गौरव-गरिमा के साथ बहुत बड़ी जिम्मेदारी का एहसास दिलाते हैं। उनसे सीखने को मिलता है कि कृतज्ञता से भरा ह्रदय कैसा होना चाहिए।
पढ़नेवाले और पढ़ानेवाले की बीच एक ऐसा आत्मीय रिश्ता होता है जिसमें दोनों एक दूसरे को ऊंचाइयां देते रहते हैं। विद्यार्थियों के प्रश्नों ने मुझे इतना पढ़ने और सोचने को प्रेरित किया कि सदैव विद्यार्थी होने का एहसास बना रहता है। मुझे पता नहीं था कि एक बैट पकड़ने वाले खिलाड़ी को भी पढ़ानेवालेलोग कलम-किताब पकड़ा देंगे और विद्यार्थी के प्रश्न मुझे नई-नई किताबों की खोज में लगा देंगे।
भारतीय ज्ञान परंपरा मानती है कि मन शिष्य हो और गुरु आत्मा हो तो इन दोनों के सतत संवाद से मानव बहुत ऊंचाइयां ले लेता है।'शिष्य-गुरु संवाद केंद्र' शैक्षिक दृष्टिकोण से सबसे पिछड़े माने जाने वाले बांसवाड़ा में एक ऐसे प्रयोग केंद्र का नाम है जिसका मूलमंत्र है-
'पढ़ते जाओ,पढ़ाते जाओ
प्रेम के गीत सुनाते जाओ।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹