शिक्षक के लिए मार्च
September 20, 2025🙏'हमें शिक्षक चाहिए' इस नारे के साथ लड़कियों का 65 किलोमीटर का मार्च अद्भुत है।🙏
संवाद
'शिक्षक के लिए मार्च'
शिक्षा और शिक्षक के लिए सरकारी स्कूल की 90 लड़कियों ने 65 किलोमीटर का मार्च किया। पहाड़,जंगल,नदी को रात में भी पार करते हुए वे चिल्ला रही थीं-'We want teacher.' भारत के सुदूर पूर्व अरुणाचल प्रदेश में गूंजी यह आवाज यह बता रही है कि तरुणाई का सपना कैसा होना चाहिए। भारत की अधिकांश तरुणाई जहां मोबाइल और मस्ती में अपने जीवन की सार्थकता समझ रही हैं, वहीं पर शिक्षा और शिक्षक के लिए मचल रहे इन बच्चियों के अरमान हमें बहुत कुछ सिखाते हैं।
राजस्थान में जहां सरकारी स्कूल के जर्जर भवनों की संख्या पर बवाल मचा हुआ है, वहां पर यदि शिक्षा और शिक्षक के लिए अरुणाचल प्रदेश की लड़कियों वाली आवाज बुलंद हो जाए तो देश का कायाकल्प हो जाए।
भारत के पास तरूणों की संख्या सबसे ज्यादा है और वे तरुण सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों की वर्तमान शिक्षा पद्धति में सिर्फ बेरोजगार युवक के रूप में समाज के सामने में लाखों नहीं करोड़ों की संख्या में उपस्थित हो रहे हैं। डिग्री तो उन्हें मिल जाती है किंतु उन्हें योग्यता प्राप्त नहीं होती। क्योंकि अधिकांश सरकारी शिक्षण संस्थानों में या तो शिक्षक की कमी है या उपलब्ध शिक्षक विद्यार्थियों को वह शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं जो उनके जीवन में योग्यता पैदा करे।
जब राष्ट्र निर्माता शिक्षक झूठी सूचनाएं जुटाने में और क्लास के बाहर अपना समय और ऊर्जा लगाने में व्यस्त हो जाए तो एक ऐसा देश बनता है जो अपने को विश्वगुरु होने का दावा तो करता है लेकिन स्वयं भी जानता है कि उसकी वास्तविकता क्या है। उस वास्तविकता को बदलने के लिए अरुणाचल प्रदेश की सरकारी स्कूल की बालिकाओं का यह मार्च मेरी दृष्टि में कोई साधारण मार्च नहीं है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में जो प्रावधान किए गए हैं,उसके मूल में इसी प्रकार की चेतना का निर्माण मुख्य उद्देश्य है। एक तरफ शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया जाता है और दूसरी तरफ शिक्षा की दशा और दिशा ऐसी होती है कि जहां जीवन बनने के बदले बिगड़ने लगता है। सरकारी शिक्षण संस्थानों से दूर होते जा रहे विद्यार्थियों पर यदि समय रहते गौर नहीं किया गया और क्लास की प्रतिष्ठा स्थापित नहीं की गई तो हमारे पास युवाओं की एक ऐसी फौज होगी जिसके पास शक्ति तो बहुत होगी किंतु विवेक और योग्यता नहीं होगी। विवेक और योग्यता के अभाव में यही शक्ति राष्ट्र को उस गर्त में ले जाएगी जहां से बाहर निकल पाना बरसों तक संभव नहीं होगा। उस अंधेरी रात की झलक हमें हर प्रतियोगी परीक्षा के आयोजन में दिखाई पड़ जाती है जहां पर पुरानी कहावत "एक अनार,सौ बीमार" आजकल 'एक अनार,करोड़ बीमार' के रूप में तब्दील हो चुकी है-
'तरुणाई के अरमान मचलने लगे अब कुछ तो कीजिए
भारत के सुनहरे सपने बिखरने लगे अब कुछ तो कीजिए'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹