🙏शारदीय नवरात्रि की शुभकामना🙏


संवाद


'साधना की नवरात्रि'


हमारी नई पीढ़ी हमारी परंपरा के वैज्ञानिक आधार को यदि नहीं समझती तो विदेशी परंपरा की लुभावनी आंधी में बह जाएगी। नवरात्रि साधना की रात्रि है। अधिकांश जन इसे नाचने-गाने और उत्सव मनाने की रात्रि समझते हैं।


राम-रावण युद्ध में जब रावण राम की सेना पर बहुत भारी पड़ने लगा तब राम ने ध्यान में उतरकर यह जाना कि शक्ति की देवी दुर्गा रावण का साथ दे रही है। इस शक्ति का साथ लिए बिना युद्ध जीतना संभव नहीं था।


राम ने युद्ध के समय में शक्ति की आराधना शुरू कर दी-


'या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।'


प्रत्येक दिन मां की पूजा में कमल के फूल राम अर्पित कर रहे थे और अंतिम दिन आराधना में कमल का फूल कम पड़ गया। राम को पूजा पूर्ण करनी ही थी। उन्हें ध्यान आया कि मां उन्हें राजीव नयन कहती थी। तब उन्हें विचार आया कि कमल के फूल की कमी को अपने नयन चढ़ाकर पूर्ण किया जा सकता है-


'व्रत का अंतिम मोल चुकाते हुए न जो रोते हैं


पूर्ण-काम जीवन से एकाकार वही होते हैं।'


ज्यों ही अपने नयन निकालने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाए करुणामयी मां ने प्रकट होकर हाथ रोके और दर्शन दिए। कथा कहती हैं कि शक्ति की अधिष्ठात्री मां के आशीर्वाद से उन्हें रावण पर विजय प्राप्त हुई।


संदेश यह है कि जीवन का कोई भी युद्ध साधना के बिना और शक्ति की उपासना के बिना नहीं जीता जा सकता। अस्त्र-शस्त्र की बाहरी शक्ति पर्याप्त नहीं होती जब तक आंतरिक शक्ति जाग्रत नहीं होती। आंतरिक शक्तियों के जागरण के लिए ही भारतीय संस्कृति ने अपने पर्व-त्यौहार को दिव्य शक्तियों की साधना-आराधना-उपासना के साथ जोड़ा है। इससे हमारी नकारात्मकता सकारात्मकता में बदल जाती है, हमारी दुर्बलता सबलता बन जाती है और हमारी पराजय विजय में तब्दील होकर विजयादशमी लाती है-


'जो अंतर की आग अधर पर आकर वही पराग बन गई


अवचेतन में छिपी घृणा ही चेतन का अनुराग बन गई


स्व की चरमासक्ति स्वयं से छलकर परम विराग बन गई


सप्तम स्वर तक पहुंच भैरवी कोमल राग विहाग बन गई।'


आज के विश्व के समक्ष सबसे बड़ा संकट यही है कि अस्त्र-शस्त्र जैसी बाहरी शक्तियों से ही युद्ध लड़े जा रहे हैं और आंतरिक शक्तियों के जागरण के लिए कोई प्रयास किसी नेतृत्व द्वारा नहीं किए जा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि युद्ध, युद्ध और युद्ध ही चारों ओर फैलता दिखाई दे रहा है। जब तक आंतरिक शक्तियों के जागरण के लिए साधना-आराधना-उपासना की भारतीय युक्ति को नहीं अपनाया जाता तब तक विनाश की आग में विश्व झुलसता रहेगा। क्योंकि शक्ति की वही देवी विद्या,लक्ष्मी इत्यादि विविध रूपों के साथ चेतना के रूप में भी सबमें स्थित है। साधना से शक्ति का साथ लेकर जब राम-चेतना युद्ध में उतरती है तो रावण-चेतना पराजित होती है-


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹