आई लव की राजनीति
September 29, 2025🙏विद्यार्थी का प्रश्न:दिल में जो नहीं उतरा 'love', वह सड़कों तक कैसे उतर गया? सर!कृपया बताएं।🙏
संवाद
'आई लव की राजनीति'
आई लव मोहम्मद, आई लव महादेव, आई लव महाकाल; आजकल फिजाओं में चारों ओर लव,लव,लव ही गूंज रहा है। लब पर लव हो,बैनर पर लव हो किंतु जीवन में लव कहीं दिखाई नहीं दे तो सीधा-सरल व्यक्ति घोर आश्चर्य में पड़ जाता है कि आखिर माजरा क्या है? यह कौन सा love है जो पुलिस के रोकने से भी नहीं रुक रहा है।
पश्चिमी संस्कृति से आयातित इस लव शब्द में 'I fall in love' (अर्थात् मैं लव में गिरा) जैसे वाक्य का प्रयोग किया जाता है। लव में जब भीड़,पत्थराव और भगदड़ देखने को मिलता है तो यह गिरना ही तो है।
"I love you" में आई (I) और यू (you)के बीच में 'लव' पिसता चला जाता है। कबीर दुखी मन से कहते हैं-
'चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय,
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।'
ऐसी जनश्रुति है कि यह दोहा सुनने पर कबीर के पुत्र कमाल ने जवाब दिया:
'चलती चक्की देख के, हँसा कमाल ठठाय,
कीले से जो लग रहा, ताहि काल न खाय।'
अर्थात् जिस तरह अनाज के जो दाने चक्की की कील के पास होते हैं तो वे साबुत बच जाते हैं, उसी तरह जो अपना मन परम के प्रेम में लगा देता है वह विपरीत चलते चक्की के पाटों के बीच पिसने से बच जाता है। क्योंकि उसके लिए-
'इसक अल्लह की जाति है,इसक अल्लह का अंग
इसक अल्लह औजूद है , इसक अल्लह का रंग ।'
किंतु आज 'मैं' और 'तू' के बीच में यह लव खतरे में पड़ गया है। लब पर तो love है किंतु हृदय में hate भरा हुआ है।
भारतीय संस्कृति में साधना के द्वारा 'मैं' और 'तू' को मिटाने का प्रयास किया गया है। इसके लिए एक शब्द है-'अद्वैत' अर्थात् जहां दो नहीं रहे। एक ही आद्या शक्ति चेतना रूप में सबमें बसती है-
'या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।'
आज विज्ञान भी इस सत्य के करीब पहुंचने लगा है कि ब्रह्मांड में एक परम तत्व चेतना ही है। वह चेतना जब नर या नारी का रूप लेती है ;हिंदू ,मुस्लिम,सिख या ईसाई का रूप लेती है ;ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य या शूद्र का रूप लेती है तो बंटकर आपस में संघर्ष करने लगती है। जब वह चेतना अपने मूल रूप में लौटती है तो 'सबमें तेरा रूप समाया, कौन है अपना कौन पराया' का गीत गुनगुनाने लगती है और सबसे प्रेम करने लगती है।
प्रेम को उपलब्ध व्यक्ति सिर्फ इंसान से ही नहीं बल्कि सभी प्राणियों से प्रेम करने लगता है। पशु-पंछियों से लेकर पेड़-पौधों तक में उसका प्रेम संचारित होने लगता है। प्रेम में अवस्थित धार्मिक व्यक्ति 'सर्वे भवंतु सुखिन:' की प्रार्थना में उतर जाता है।
लेकिन जब 'I love Muhammad' और 'I love Mahadev' का नारा बुलंद होने लगता है तब 'रिलीजन' और 'लव' के नाम पर राजनीति शुरू हो जाती है जो संघर्ष और हिंसा को जन्म देती है-
'अमन और चैन का साया नहीं है इन राहों पे
दाढ़ियां और चोटियां टकराती है चौराहों पे।
तेरे शहरों में मुहब्बत का पता क्या ढूंढें
आदमी तक नहीं मिलता है,खुदा क्या ढूंढें।।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹