उन्मादग्रस्त मन का इलाज आध्यात्मिक-वैज्ञानिक शिक्षा
October 10, 2025🙏विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्टूबर पर उन्मादग्रस्त मन का विश्लेषण 🙏
संवाद
'उन्मादग्रस्त मन का इलाज आध्यात्मिक-वैज्ञानिक शिक्षा'
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर यह विचारणीय है कि धर्म और जाति के उन्माद में मनोरोगियों की संख्या जो बढ़ती जा रही है, वह देश को कहां लेकर जाएगी।मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंककर जिस असहिष्णुता का परिचय दिया गया है, उसको दरकिनार कर मुख्य न्यायाधीश ने उस सहिष्णुता की पुनर्प्रतिष्ठा कर दी है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। दुर्भाग्य की बात है कि दर्शन का देश भारत प्रदर्शन का देश बनता जा रहा है। भारतीय संस्कृति का पहला विषय दर्शन था जिसने मूल तत्त्व चेतना को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया। यह चेतना सभी में और सभी जगह विद्यमान है; इसकी घोषणा कर भारतीय ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले विविधता में एकता का मूलमंत्र जगत को दिया।
उसी मूलमंत्र को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने शिवमहिम्न: स्तोत्र को उद्धृत करते हुए दिया था-
"रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥"
अर्थात् जिस प्रकार विभिन्न जलप्रवाह विभिन्न रास्तों से चलकर अंत में सागर में ही मिलते हैं, उसी प्रकार हे प्रभु! अलग-अलग रुचियों के अनुसार सीधे या टेढ़े-मेढ़े विभिन्न मार्गों का अनुसरण करने वाले सभी मनुष्यों के लिए आप ही एकमात्र गंतव्य स्थान हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो चेतना के सागर परमात्मा से आए हुए हम सभी बूंदें अपने-अपने रास्तों से चलकर उसी परम चेतना के सागर में पहुंच जाते हैं।
उस विराट हिंदू दर्शन को देने वाले विवेकानंद का झंडा विवेकहीनों के हाथ में पहुंच गया है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के माध्यम से विराट हिंदू दर्शन को प्रदर्शन का विषय बनाकर सत्ता तक पहुंचना ही इनका मुख्य गंतव्य हो गया है। जबकि दर्शन का गंतव्य स्थान सत्य है,इसी कारण से भारत ने राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' को स्वीकार किया है।
सहिष्णुता का सीधा संबंध सत्य से है,तभी भारतीय ऋषि ने कहा-'एकं सत् विप्रा बहुधा वदंति'. सभी में चेतना एक ही है और वही सत्य है; चाहे उसे हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई कहो या ब्राहमण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र कहो या हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी, ईरानी,अफगानिस्तानी कहो। सभी में उस एक को देखने की दृष्टि 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' की उद्घोषणा द्वारा हमारी संस्कृति ने दी है। इसी कारण से एक ही घर में कोई शिव का भक्त है, कोई राम का भक्त है,कोई हनुमान का भक्त है, कोई विष्णु का भक्त है, कोई दुर्गा का भक्त है,कोई लक्ष्मी का भक्त है, कोई सरस्वती का भक्त है,कोई काली का भक्त है। दुर्भाग्य की बात है कि उस विराट सनातन हिंदू दर्शन को जीने वाले दार्शनिकों से समाज दूर जा रहा है और उनको भुलाता चला जा रहा है जबकि सहिष्णुता के सनातन मूल्यों को छोड़कर प्रदर्शन करने वाले समाज में मुख्य चर्चा का विषय बन रहे हैं और लोकप्रिय होते जा रहे हैं। ऐसे में मेरे हृदय की पीड़ा है कि
'फिर रहा है आदमी भूला हुआ , भटका हुआ
एक न एक लेबल हर एक माथे पर है लटका हुआ
आखिर इंसान तंग सांचों में ढला जाता है क्यों
आदमी कहते हुए अपने को शरमाता है क्यों?'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹