🙏शुभ धनतेरस,शुभ लक्ष्मी🙏


संवाद


'सत्यानुसारिणी लक्ष्मी:'


'लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती है'-ऋषियों के अनुभव से निकला हुआ जीवन का यह संदेश शाश्वत है। आज की मूल समस्या यह है कि एक तरफ "लक्ष्मी" का अर्थ संकुचित कर दिया गया और दूसरी तरफ 'सत्य' से उसका संबंध विच्छेद कर दिया गया है। लक्ष्मी जब 'सुख-समृद्धि' से सिर्फ 'मनी' (money)में संकुचित हो जाती है तो मानो सागर को हमने कुआं बना दिया । और जब लक्ष्मी का संबंध सत्य से तोड़ दिया जाता है तो वह कुआं "हौज" में परिवर्तित हो गया। कुआं छोटा हो , फिर भी भूतल के जल से जुड़ा रहता है किंतु हौज बनते ही उसका संबंध किसी अंतरस्रोत से टूट जाता है। हौज में पानी कृत्रिम रूप से डाला जाता है और वह जल्दी सड़ने लगता है।


            हरियाणा के पुलिस महकमे में ADGP पूरण जी और ASI संदीप जी की आत्महत्या का मामला भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता जा रहा है। 'पैसा खुदा तो नहीं लेकिन खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं' जैसे सिद्धांत साधन और साध्य के भेद को भूल जाते हैं। 'Money is an obedient servant but terrible master' जैसे विचार देने वाले विचारक ने साधन और साध्य के अंतर को समझने का प्रयास किया है।


          मानव मकान बनाता है उसमें रहने के लिए , बिस्तर लाता है उस पर सोने के लिए और सारी सुविधाएं जुटाता है सुख से जीने के लिए लेकिन मकान और बड़ा बनाने में, बिस्तर और महंगा लाने में और सुविधाएं अपरंपार जुटाने में ही उलझ कर रह जाए तो वह जीएगा कब।


                  असत्य  के रास्ते से अर्जित किया गया धन अपने साथ जो चिंताएं और तनाव लाता है, उनको देखने वाली दृष्टि का अभाव होने पर साधन ही साध्य बन जाता है। राजा मिडास की प्रतीकात्मक कहानी यही कहती है कि सब कुछ सोना (gold) हो जाए तो फिर व्यक्ति खाएगा और पिएगा क्या?लियो टॉलस्टॉय की कहानी 'एक आदमी को कितनी जमीन चाहिए?' में जमीन के लिए दौड़ता हुआ व्यक्ति मर गया, यह सोच ही नहीं पाया कि जीने के लिए आखिर कितनी जमीन चाहिए। मरने पर सिर्फ छह फुट की कब्र के बराबर ही जमीन मिलती है।


             'Having' (सामान) व्यक्ति का बड़ा होता जा रहा है और 'Being' (आत्मा) छोटा होता जा रहा है-


'यह कौन सी धूप है इस महानगर में दोस्तों


हम तो छोटे हो गए परछाइयां बढ़ती गईं


महफिलें ज्यों ज्यों हंसीं तनहाइयां बढ़ती गईं


आप ज्यों ज्यों पास आए खाईयां बढ़ती गईं।'


           धन के पीछे पागल की तरह दौड़ता हुआ इंसान समझ ही नहीं पा रहा है कि उपभोग के बाद बचे हुए धन को दान करना पड़ता है अन्यथा उसका नाश निश्चित है। भर्तृहरि नीतिशतक में कहते हैं-


'दानं भोगो नाशः तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।


यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति॥'


        जब खाली हाथ दुनिया में व्यक्ति आता है और खाली हाथ ही जाता है तो मृत्यु के बाद जाने वाली संपत्ति को भी क्यों अर्जित नहीं करता। भारतीय संस्कृति की लक्ष्मी की कल्पना में जीवन में आने वाले सुकून-शांति के साथ जीवन के बाद जाने वाले दान-पुण्य का भी समावेश है। तभी तो लक्ष्मी पूजा में एक तरफ सरस्वती और दूसरी तरफ गणेश को भी बिठाया जाता है। विद्या की देवी सरस्वती और विघ्नहर्ता-मंगलकर्ता देव गणेश साथ नहीं हो तो लक्ष्मी सिर्फ मनी (money)बनकर रह जाएगी। 'अपना सपना मनी मनी.... गाने वाले लोगों को तुलसीबाबा का रामचरितमानस में लिखी हुई धन की यह परिभाषा समझ ही नहीं आ सकती-


'गोधन गजधन बाजिधन और रतनधन खान


जब आवे संतोष धन,सब धन धुरि समान ।'


            असत्य के रास्ते से 'मनी' तो कमाया जा सकता है किंतु लक्ष्मी नहीं ; क्योंकि वह तो सत्य का ही अनुसरण करती है-'सत्यानुसारिणी लक्ष्मी:'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹