🙏छठ पर्व की शुभकामना:छठ पर्व के बाद होने वाला चुनाव क्या बिहार के भाग्य के सूर्योदय का प्रारंभ होगा?🙏


संवाद


'सूर्योपासना का पर्व छठ और बिहार के भाग्य का सूर्य'


सूर्योपासना वाला बिहार का छठ पर्व अपनी वैज्ञानिकता और दार्शनिकता के कारण विश्वव्यापी पर्व बन सकता है, ठीक जिस प्रकार से नालंदा विश्वविद्यालय किसी समय विश्वप्रसिद्ध शिक्षा-केंद्र था। वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्य से सौर परिवार का जन्म हुआ-मंगल,बृहस्पति,शनि,पृथ्वी इत्यादि। फिर पृथ्वी से पेड़-पौधे से लेकर जीव-जंतु तक‌ का जन्म हुआ। दूसरे शब्दों में कहें तो सूर्य मां है,पृथ्वी बेटी और फिर हम सब उसकी संतानें। 'पुत्रो अहम् पृथिव्या:' में इसी सत्य की उद्घोषणा है।


         मूलोद्गम वाले देव 'सूर्यदेव' की आराधना वाला यह पर्व दार्शनिकता की दृष्टिकोण से इसलिए अनूठा है कि इसमें डूबते सूर्य की उपासना से व्रत का प्रारंभ होता है और उगते सूर्य की आराधना से समापन। विश्व की सबसे महान विभूति सूर्यदेव के अस्त और उदय दोनों स्वरूपों की पूजाकर बिहार का छठ पर्व यह संदेश दे रहा है कि-


'क्यूं दूर हट के जाएं हम दिल की सरजमीं से


दोनों जहां की सैरें हासिल हैं सब यहीं से


यह राज सुन रहे हैं एक मौजें तहनसीं से


डूबे हैं हम जहां पर उभरेंगे फिर वहीं से।'


          'बुद्ध के बिहार का सूरज जो अस्त हुआ है,वह कब और कैसे उदय होगा' यह एक गहरे विश्लेषण का विषय है। उत्थान किसी प्रदेश का अकस्मात् नहीं होता किंतु पतन शीघ्रता से होता है-


'पतन बहुत आसान मगर उत्थान कठिन है


ध्वंस बहुत ही सहज मगर निर्माण कठिन है।'


गौरवशाली अतीत से बदहाली और बदनामी तक पहुंचे बिहार की पीड़ा असहनीय है। आकाश में चमकी बिजली से आंखों को चकाचौंध कर देने वाला जो क्षणिक उजाला होता है, उससे कई गुना ज्यादा प्रकाश बिहार की धरती पर जन्मे ज्ञानपिपासुओं ने अपने दम पर चारों ओर स्थायी रूप से फैलाया था। किस धरती को ऐसा सौभाग्य मिलता है कि धर्म से लेकर राजनीति तक और ज्ञान से लेकर विज्ञान तक का शिखर छुआ हो।


        लेकिन  किसने सोचा था कि नालंदा विश्वविद्यालय की धरती साक्षरता की दर में सबसे पिछड़ जाएगी और गंगा की माटी से बनी उपजाऊ धरती इतनी वीरान हो जाएगी।किसने सोचा था कि बिहार की प्रतिभाएं और परिश्रम दूसरे स्थान की तस्वीर भी सुधारेंगी और अपनी धरती और अपनों से दूर होकर अपमान का घूंट भी पियेंगी‌।


          चुनाव के कारण बिहार की बदहाली और बदनामी सुर्खियों में हैं किंतु असली मुद्दा 'शिक्षा' नेपथ्य में है। मानव संसाधन को तैयार करने वाली रामबाण औषधि 'शिक्षा' है।सिर्फ बिहार प्रदेश ही नहीं बल्कि समस्त देश की बहुत सारी समस्याओं का सबसे बड़ा समाधान शिक्षा है। खासकर बिहार के लिए यह विशेष इस कारण से है कि ज्ञान के शिखर को छूने वाले अज्ञान के अंधेरे में अपनी पहचान खोकर भी अतीत के ज्ञान के अहंकार को अभी भी पकड़े हुए हैं।


            ज्ञानप्रधान संस्कृति के सामने यह चुनौती होती है कि अपने अतीत के ज्ञान को बचाने और आगे के ज्ञान को बढ़ाने के लिए नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों से ज्यादा तपस्या और साधना करनी पड़ती है। क्योंकि पैसे की तरह ज्ञान एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। इसे तो अर्जित करना पड़ता है। अन्यथा बुद्ध और महावीर को राजमहल छोड़कर तपस्या के लिए जंगल में क्यों जाना पड़ता?


              लोकतंत्र में चुनाव एक अवसर होता है जब जनता चाहे तो बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। यदि जाति,धर्म और दल से ऊपर उठकर सिर्फ शिक्षित-संस्कारी उम्मीदवार का चयन जनता करती है तो शिक्षा हमारी प्राथमिकता में होगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से हम अपनी आंतरिक और बाह्य शक्तियों को सिर्फ पहचान ही नहीं सकते बल्कि उसका सदुपयोग भी कर सकते हैं।नालंदा विश्वविद्यालय ने बिहार को वैश्विक पहचान दी थी और आज उस शिक्षा को भुलाकर बिहारवासी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं-


'गिरा गर्त्त में बिहार आज हैरान बहुत है


बुद्धि,श्रम के पलायन से वीरान बहुत है


वहां अंधेरों के बहुमत का गुणगान बहुत है


अबकी बदलेगा बिहार यह अरमान बहुत है।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹