🙏महिला विश्वकप जीत की बधाई 🙏


संवाद


'जीत के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मायने'


रविवार की शाम मेरे लिए एक दुखद खबर से भरी थी तो रात महिला विश्व कप जीत की खबर ने दिल के अंधेरे में एक दीपक जला दिया। ऋषियों का एक वचन याद आ रहा था कि


'दु:खस्य अनंतरम् सुखम् सुखस्य अनंतरम् दुखम्


न नित्यं लभते दुखम् , न नित्यम् लभते सुखम्।'


इसे किसी शायर के शब्दों में व्यक्त करूं तो-


"जिंदगी जख्म भी ,नश्तर भी,तलवार भी है


जिंदगी गीत भी ,रक्श भी , झंकार भी है।'


जिंदगी की तरह क्रिकेट भी अनिश्चितताओं का गेम है, इसी कारण से इस खेल के प्रति एक अद्भुत रोमांच देखने को मिलता है। पुरुष प्रधान इस दुनिया में महिलाओं की उपलब्धि आज भी चौंकाती है और खेल के मैदान पर विश्वविजेता बनने की उपलब्धि तो आश्चर्य से भर देती है। क्रिकेट जैसे खेल को व्यवसायियों और विज्ञापनों ने इतना लोकप्रिय बना दिया है कि वह एक धर्म के समान हो गया है। फिर भी वूमेंस क्रिकेट और मेंस क्रिकेट में जमीन आसमान का फर्क है।


1983 के वर्ल्ड कप में कपिल देव की कप्तानी में भारत ने जो जीत हासिल की उसने 'जेंटलमैन गेम' को 'कॉमनमैन गेम' में तब्दील करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। किशोरावस्था में उस जीत को देखकर हम और हमारे साथी क्रिकेट के दीवाने हो गए और मोहल्ले-मोहल्ले तथा गली-गली में क्रिकेट का एक जुनून सवार हुआ। जब 2011 में धोनी की टीम ने विश्व कप जीता तो 'कॉमनमैन गेम' आईपीएल से 'इवेंट मैनेजमेंट गेम' में बदल गया। क्रिकेट की लोकप्रियता के साथ व्यवसायिकता तो बहुत बढ़ी किंतु महिला क्रिकेट के लिए अभी भी डगर बहुत चुनौतियों से भरी थी। क्योंकि महिला वर्ल्ड कप की मार्केटिंग बहुत फीकी चल रही थी। लेकिन सेमीफाइनल से भारत के चमत्कारिक प्रदर्शन ने खासकर जेमिमा रोड्रिग्स के ऑस्ट्रेलिया पर जीत दिलाने वाले शतक ने ध्यान आकर्षित किया और फाइनल की जीत ने तो कुछ समय के लिए ही सही किंतु सारा ध्यान महिला क्रिकेट पर केंद्रित कर दिया है।


सबसे बड़े आकर्षण का बिंदु महिला वर्ल्ड कप स्क्वाड से बाहर कर दी गई शेफाली का ऑलराउंड प्रदर्शन रहा। प्रतिका के चोटिल होकर बाहर होने के बाद शेफाली को भारतीय टीम में मौका मिला और इस अकस्मात अवसर को उन्होंने अपने जुनून और जज्बे से यादगार अवसर बना दिया। कोई नहीं जानता था कि शेफाली के घरेलू क्रिकेट में गिराए गए परिश्रम की बूंद का परमात्मा इस आश्चर्यजनक ढंग से इतना बड़ा पुरस्कार देगा कि वे 'फाइनल का प्लेयर ऑफ द मैच' हो जाएंगी। दीप्ति का 'प्लेयर ऑफ द सीरीज' बनना और हरमनप्रीत की कप्तानी में विश्व कप खिताब जीतना निश्चितरूपेण महत्वपूर्ण चर्चा के केंद्र बने रहेंगे और कई लड़कियों में नई उमंग और नए उत्साह भर देंगे। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या पितृसत्तात्मक समाज की सोच में कोई बड़ा बदलाव आएगा?


चेतना के स्तर पर लड़के और लड़की में कोई भेद नहीं है किंतु समाज और सोच के स्तर पर यह भेद इतना बड़ा है कि अपनी बेटी राधिका को खेल में आगे बढ़ाने वाला पिता ही अपनी बेटी को सम्मान पर ठेस पहुंचाने के नाम पर गोली मार देता है। समाज की सोच में यह कब परिवर्तन आएगा कि परिवार का सम्मान सिर्फ लड़कियों से ही नहीं बल्कि लड़कों से भी जुड़ा हुआ है। लड़कियों के प्रति देहवादी और भोगवादी दृष्टि को बदलने में यदि विश्व विजय की उपलब्धि कामयाब होती है तो यह उपलब्धि चिरस्थायी होगी। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर में जंग की जीत का नेतृत्व किया और अब खेल में विश्व कप की जीत का नेतृत्व शेफाली,दीप्ति और हरमनप्रीत कौर जैसी युवतियां कर रही हैं जो इस बात का संदेश है कि ऊपर वाले ने लड़कियों को लड़कों के ही समान सामर्थ्य देकर इस धरती पर भेजा है। किंतु ओलंपिक में नाम रोशन करने वाली साक्षी मलिक और विनेश फोगाट जैसी महिला खिलाड़ियों के केस में हमने देखा कि हमारे समाज की मन:स्थिति और वस्तुस्थिति क्या है?धरती की सोच यदि बदली तो अंतरिक्ष की ऊंचाइयां राकेश शर्मा और शुभांशु शुक्ला के लिए उपलब्ध हैं तो कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के लिए भी। भारत में गौतम,भारद्वाज और विश्वामित्र जैसे ऋषि हुए तो गार्गी,लोपामुद्रा और मैत्रेयी जैसी ऋषिकाएं भी हुईं।


महिला विश्व कप जीत का जश्न मनाना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है उस सोच को बदलना जो आधी आबादी को अपनी प्रतिभा से इस धरा को और ज्यादा गौरव देने से रोक रहा है-


'कुछ फूलों का खिल जाना ही उपवन का मधुमास नहीं है


बाहर घर का जगमग करना भीतर का उल्लास नहीं है


ऊपर से हम खुशी मनाते, पर पीड़ा न जाती घर से


अमराई के लहराने पर भी सुलगा करते हैं भीतर से


रेतीले कण की तृप्ति से बुझती अपनी प्यास नहीं है


कुछ फूल का खिल जाना ही उपवन का मधुमास नहीं है।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹