रफ्तार और नशे से प्यार
November 6, 2025🙏सड़क दुर्घटनाओं के मानवीय और मनोवैज्ञानिक पहलू का विश्लेषण 🙏
संवाद
'रफ्तार और नशे से प्यार'
सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या अब महामारी का रूप ले चुकी है। एक आकलन है कि विश्वयुद्धों में भी इतने लोग नहीं मारे गए जितने लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक,राज्य स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक सड़क दुर्घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। राजस्थान के जयपुर में तो नशे में धुत्त एक डंपर ड्राइवर ने 'नो एंट्री जोन' में असमय में प्रवेश करके अनेक लोगों को कुचलकर मार दिया। जब ड्राइवर कल्याण मीणा से पूछताछ हुई तो उसे इतनी बड़ी दुर्घटना को अंजाम देने का अफसोस भी नहीं था जबकि तेरह घरों के चिराग बुझ गए और कई जिंदगियां अब भी अस्पताल में असहनीय दर्द से कराह रही हैं। अब सरकार द्वारा गति नियंत्रण के नए नियम बनाए जा रहे हैं।
भारतीय संस्कृति के पूर्णावतार कहे जाने वाले कृष्ण महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बने थे। विवेकशील कृष्ण के कारण महाभारत युद्ध का परिणाम बदल गया क्योंकि उन्हें मालूम था कि रथ कैसे चलाना है और कितनी गति से चलाना है। आज विवेकहीन ड्राइवरों के कारण सभी जगह महाभारत छिड़ गया है और मृतकों तथा घायलों से माहौल गमगीन हो गया है।
बहुत तीव्र गति वाले वाहन हमने बना दिए और उसकी गति को बढ़ाने के लिए हाईवे बना दिए जिसके कारण मंजिल पर जल्दी पहुंचने के चक्कर में मौत जल्दी आ जा रही हैं। किसी शायर ने सही फरमाया है कि मंजिल कोई वस्तु नहीं है जिसे पा लेना है,चलते जाने का नाम ही जिंदगी है-
'मंजिल मंजिल करती दुनिया मंजिल है कोई शै नहीं
जिसको देखा चलते देखा पहुंचा तो कोई है नहीं।'
पहली बार कार हमने खरीदी और चलाना सीखा। चलाने का बहुत अनुभव नहीं हुआ था और मुझे 1500 किलोमीटर दूर अपने घर बांसवाड़ा से बिहार जाना था। कोई कुशल ड्राइवर नहीं मिला तो स्वयं ही गाड़ी चलाने का निर्णय लेना पड़ा। अपनी ड्राइविंग पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं था किंतु अपनी सजगता पर पूर्ण विश्वास था। नियंत्रित गति और सजगता से चलाने के कारण इतनी दूर के सफर पर सपरिवार मैं आराम से बातचीत करते हुए गया भी और लौट भी आया। तब मुझे पता चला कि चालक के लिए कुशलता जितना ज्यादा जरूरी है,उससे कहीं ज्यादा जरूरी है सजगता।
नए नियम बनाना और नियमों में सख्ती करना जितना जरूरी है; उससे भी ज्यादा जरूरी है मन के नियम को समझना। मन अपने आप में बहुत चंचल है। विवेकानंद मन की तुलना उस बंदर से करते हैं जिसने सैकड़ो घड़ा शराब पी लिया है और उस पर से उसको हजारों बिच्छुओं ने डंक मार दिया है।
ऐसे मन वाले लोग ऊपर से शराब पी लेते हैं , चलाते समय मोबाइल का उपयोग करते हैं और कई प्रकार के मन ही मन सपने उसी समय बुनते रहते हैं। ऐसे में सावधानी हटती है और दुर्घटना घटती है जिसमें अपना सपना ही खत्म नहीं होता ,अपनी जान के साथ दूसरी अनेक जानें भी खत्म हो जाती हैं-
'रफ्तार से प्यार यह किस मुकाम पर ले आई
मंजिल से दूर ले गई और दर्दनाक मौत लाई।'
आज की जीवन शैली ऐसी बन गई है कि हर व्यक्ति जल्दी में है किंतु क्षणमात्र को ठहरकर यह नहीं सोच रहा कि पहुंचना कहां है। वह तो मन का गुलाम बन गया है। मन नई-नई मंजिलें बनाता रहता है और उसे दौड़ाता रहता है। लोग कहते हैं कि दौड़ने का नाम ही जिंदगी है लेकिन जिंदगी को गहराई से जाननेवाले और समझनेवाले कहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर अपनी निरर्थक दौड़ को देखना असली जिंदगी है; इसलिए
'हर मौसम में नीरव और निश्चिंत रहना
वसंत की नदी की भांति मंद मंद बहना।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹