मेरे सीनियर्स मेरे कल्याणमित्र
November 7, 2025🙏रैगिंग की विकृति में मेरे सीनियर्स की संस्कृति: अप्रैल 2025 में जब सुप्रीम कोर्ट उच्च शिक्षण संस्थानों में सीनियर्स के द्वारा रैगिंग के मामले में टास्क फोर्स गठित करने का आदेश देता है और अन्य आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए यूजीसी द्वारा तैयार किए गए मसौदा नियम 2025 को अधिसूचित करने की अनुमति देता है, तब ऐसे ही उच्च शिक्षा संस्थान में मेरा अनुभव सीनियर्स के प्रति रैगिंग के एकदम विपरीत रहा। मेरे सीनियर्स मेरे कल्याण मित्र साबित हुए तभी तो आज एक सीनियर के गुजर जाने पर मेरा हृदय उनको याद कर भावनाओं के ज्वार में डूबता जा रहा है... हार्दिक श्रद्धांजलि🙏
संवाद
'मेरे सीनियर्स मेरे कल्याणमित्र'
मंडन मिश्र और विद्यापति जैसे विद्वानों के मिथिलांचल क्षेत्र से आए गरीब घरों के मेरे सीनियर्स ध्रुव भैया,अरुण भैया, रमेश भैया और लीला भैया.....इत्यादि के संपर्क में मैं जिंदगी के अंधेरी रात में आया। और इन लोगों की संगति ने मेरे जिंदगी में उजाला ला दिया। इनमें से एक लीलानंद भैया आज दुनिया में नहीं रहे। दुनिया से उनके जाने की खबर के साथ ही उनके साथ बिताई गई यादें इतनी ज्यादा जिंदा हो गईं कि किसी काम में मेरा मन नहीं लग रहा। बेचैनी बहुत बढ़ने पर यह विचार आया कि उनकी यादों को शब्दों में पिरो दूं तभी थोड़ा चैन मिलेगा।
कई वर्ष का समय खेल की दुनिया में देने के बाद क्रिकेट पर बैन लगने से पढ़ाई की दुनिया में ध्यान लगाना मेरी मजबूरी थी। संस्कृत जैसे विषय में एम.ए. में प्रवेश ले लिया था किंतु संस्कृत कुछ विशेष समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे में संस्कृत माध्यम के विद्यालय और महाविद्यालय से पढ़े हुए इन सीनियर्सों के संपर्क में मैं आया। ये सभी पटना विश्वविद्यालय के एम.ए. (संस्कृत) की परीक्षा में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे और आगे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।
संस्कृत के गुरुकुलीय प्रणाली से पढ़ने के कारण संस्कृत विषय का ज्ञान इन सभी का बहुत गहरा था किंतु उससे भी ज़्यादा इन सभी के जीवन जीने का सलीक़ा अद्भुत था। उस समय मेरे घर में पैसे का अभाव था किंतु इन सभी के घर में तो हर प्रकार का अभाव ही अभाव था। अतः उनके बीच में रहकर मुझे थोड़ी अपनी अमीरी का एहसास होता था। मुश्किल से कुछ रुपए उनके घर से आते थे किंतु उतने कम रुपए में भी पटना जैसे शहर में रहकर पढ़ाई कर लेना और अपनी योग्यता बढ़ाकर अच्छी नौकरी पा लेना किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
निर्धन परिवारों के विद्यार्थी जो पढ़ाई के लिए बाहर में रहकर संघर्ष कर रहे हैं, उन सभी को इनकी जीवन शैली से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। इनके पास कपड़े कम से कम थे किंतु किताबें ज्यादा से ज्यादा। इनका नारा था-'दो रोटी कम खाएंगे, किताब नई लाएंगे'.। अतः ये सब मंगलवार को और शनिवार को हनुमान जी के नाम पर उपवास करते थे ताकि जो पैसा बचे ,उससे किताब खरीद सकें। सुबह और शाम प्रार्थना और ध्यान इनकी दिनचर्या का हिस्सा था, शेष समय में अध्ययन-अध्यापन इनके जीने का सलीका था। इनके पास जाकर मुझे ऐसा लगता था कि किसी मंदिर में आ गया हूं और वहां सिर्फ मां शारदे की उपासना चल रही है। अतः उनके रहने के स्थान का नाम 'मठ' दे रखा था
मुझे कोई विषय जल्दी समझ में नहीं आता था और बहुत प्रश्न पूछने की आदत थी। उन सभी को किसी भी प्रश्न को कई तरीके से समझाने की आदत थी। अतः मेरे साथ उन सभी का दिलो-दिमाग का रिश्ता बहुत गहरा बन गया। वे सभी मेरे गुरु थे किंतु उन सभी का हृदय इतना विशाल था कि दोस्तों सा व्यवहार मेरे साथ बनाए रखा।
खेल के मैदान से संस्कृत के आचार्य पद तक जो मैं पहुंच पाया हूं, वह ऐसी सत्संगति के बिना संभव नहीं था। संस्कृत के ऋषि कहते हैं- एक अक्षर का भी ज्ञान जिससे मिला हो, उनके प्रति जो अनुग्रह का भाव नहीं रखता उसका ज्ञान उसी प्रकार से नष्ट हो जाता है जिस प्रकार से फूटे हुए घड़े से पानी बह जाता है-
'एकाक्षर प्रदातमं यो नाभिनन्दति
तस्य श्रुतम् तपो ज्ञानम् स्रवत्याम् घटाम्बुवत्।'
मुझे तो इन सभी से अक्षर ज्ञान ही नहीं जीवन ज्ञान भी बहुत मिला.... उन सारी बातों को याद कर लीला भैया के देहावसान से मैं भावनाओं के ज्वार में डूबता जा रहा हूं। परमात्मा परिजनों को वियोग सहने की शक्ति दे और दिवंगत आत्मा को मुक्ति।
ऊं शांति: शांति: शांति:🙏🙏🙏
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे