जीवन का गौरव मूल्य से,अवधि से नहीं
November 14, 2025🙏जनजातीय गौरव दिवस की शुभकामना🙏
'सुजलाम् सुफलाम् मातृभूमि के लिए चाहिए जल,जंगल, जमीन के लिए लड़ने वाले श्री बिरसा मुंडा की आत्मशक्ति; एक दृष्टिकोण-
संवाद
'जीवन का गौरव मूल्य से,अवधि से नहीं'
कोई भी महापुरुष किसी धर्म,जाति,क्षेत्र और लिंग में जन्म अवश्य लेता है किंतु अपने गुणों के कारण वह इनका अतिक्रमण कर जाता है। जनजातीय गौरव के प्रतीक श्री बिरसा मुंडा ने जो संघर्ष किया और बलिदान दिया, वही संघर्ष और बलिदान भगत सिंह ने भी दिया। दोनों ने अपनी छोटी उम्र में इतना बड़ा काम किया कि विश्व इतिहास के संघर्ष और बलिदान के लिए ख्यात महापुरुषों में उनका नाम सदैव और सर्वत्र आदर के साथ लिया जाएगा। किंतु किसी को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है और किसी को कम। क्योंकि कलमकारों की कलम किसी पर ज्यादा चलती है किसी पर कम। लोकप्रियता के कम या ज्यादा होने के कारण संघर्ष और बलिदान की महत्ता कम या ज्यादा नहीं होती। संस्कृत का एक श्लोक है जो कहता है कि धुएं से भरी हुई लंबी जिंदगी से बेहतर है ज्वाला से भरी हुई छोटी जिंदगी-
'मुहूर्तम् ज्वलितम् श्रेयो ,न तु धुमायितं चिरम्'
इसी संदेश को भगत सिंह ने अपने परिवार के सदस्य करतार सिंह को फांसी के फंदे पर झूलने से पहले एक पत्र के माध्यम से भेजा था-
'उन्हें फ़िक्र है हरदम नया तर्जे जफ़ा क्या है
हमें शौक है कि देखें सितम की इंतहा क्या है
कोई दम का मेहमां हूं अहल ए तेरी महफिल में
चरागे सहर हूं बुझा चाहता हूं
हवाओं में रहेगी मेरे ख्यालों की बिजली
ये मुश्ते ख़ाक है फानी रहे न रहे।'
संदेश था कि जीवन तो दो दिन का मेहमान है,चला जाएगा किंतु इस जीवन का जो अमूल्य दान है 'विचारों के रूप में' वह सदैव रहेगा।
अन्याय और शोषण के विरुद्ध आदिवासी चेतना को जगाने के लिए जो आचार,विचार और व्यवहार छोटी सी कद काठी में और अल्पायु में बिरसा नमक इंसान ने दिखाया उसने उन्हें भगवान बना दिया।
'वंदे मातरम्' गीत के 150 वर्ष पूर्ण होने पर जो साल भर तक चलने वाले विभिन्न आयोजन हैं,उनकी सफलता के लिए एक ऐसा प्रतीक चाहिए जो कवि की सुजलाम्, सुफलाम्,मलयजशीतलाम्, शस्य श्यामलाम् धरती की कल्पना को साकार कर सके। ऐसी धरती जल,जंगल और जमीन से बेइंतहा प्यार करने वाली आदिवासी चेतना के द्वारा ही निर्मित किया जा सकता है। व्यापारिक चेतना वाले लोग जो औद्योगिक अपशिष्ट को नदी में बहाकर जल को प्रदूषित कर देते हैं, सड़क बनाने के लिए हरे-भरे वृक्षों को काट देते हैं, पहाड़ों को काटकर पर्यटन-केंद्र बना देते हैं और रासायनिक उर्वरकों से धरती की उर्वरता को छीनकर बंजर बना देते हैं; उनसे बंकिम चंद्र की आत्मा कभी तृप्त नहीं होगी।
बिरसा मुंडा के फैलाए गए जनजागरण और विद्रोह का ही परिणाम था कि 1908 में छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट पारित हुआ जिसके कारण आदिवासियों की जमीन दूसरा कोई नहीं छीन सकता।
आज जल गंदा कर दिया गया है, जंगल काट दिया गया है,जमीन पर पाषाण के बड़े-बड़े महल खड़े कर दिये गए है ; इससे प्रकृति असंतुलित हो गई है। ऐसे में प्रकृति के साथ जीने वाले और प्रकृति को ही परमात्मा मानने वाले जनजातीय संस्कृति की विशेष महत्ता है और उस जनजातीय गौरव के प्रतीक श्री बिरसा मुंडा जन-जन के लिए सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹