🙏पढ़े-लिखे डॉक्टर जब आतंकी बन रहे हैं तब धर्म और शिक्षा पर मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टि से विचार होना चाहिए 🙏


संवाद


'धर्म की शिक्षा बनाम शिक्षा का धर्म'


जब धर्म के नाम पर शिक्षित लोग आतंकी बन रहे हैं तो 'धर्म की शिक्षा'और 'शिक्षा का धर्म' पर गहराई से विचार करना चाहिए। धर्म और शिक्षा दोनों का उद्देश्य कोई अलग नहीं होता है क्योंकि दोनों ही इंसान को ऊंचाइयां देने के लिए हैं। धार्मिक व्यक्तित्व राम, कृष्ण,मुहम्मद, ईशा,गुरु नानक, बुद्ध, महावीर इत्यादि सभी इंसान के रूप में जन्म लिए और अपने सत्कर्मों से भगवान के रूप में स्वयं को उठाकर हम सबको जीवन को ऊंचा उठाने का संदेश दे गए। किंतु उनके अनुयायी हिंदू,मुसलमान,सिख,ईसाई,जैन,बौद्ध सभी ने अपने धर्मोपदेशकों की शिक्षा जो ग्रहण की,उनके मूल उपदेश के विपरीत लगती है।


         अन्यथा इस्लाम का अर्थ 'शांति' होता है और इतना ज्यादा अशांति फैलाने वाले जिहादी पैदा हो गए हैं कि जगत खतरे में पड़ गया है। उनकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म जो सहिष्णुता और सामंजस्य के लिए विशेष पहचान रखता है उसमें भी असहिष्णुता और अलगाव की भावना बढ़ रही है।


        धर्म का अर्थ है जो धारण करे-'धर्मो रक्षति रक्षित:' इसका भाव यह है कि यदि हम अपने धर्म की रक्षा करेंगे तो रक्षा किया हुआ धर्म हमारी रक्षा करेगा अन्यथा मारा हुआ धर्म हमें मार डालेगा। धर्म की रक्षा कैसे होती है?-'आत्मवत् सर्वभूतेषु य:पश्यति स पंडित:' अर्थात् जो सबको स्वयं के समान देखता है, इस दृष्टि को जीवन में उतारने पर धर्म की रक्षा होती है। यह आत्मा या चेतना सभी में परमात्मा या परम चेतना से आई हुई है। फिर कोई भी एक दूसरे से अलग-अलग नहीं है क्योंकि


'सबमें तेरा रूप समाया,कौन है अपना कौन पराया।'


         यही धारणा इंसान को भगवान बना देती है और यही धर्म है। किंतु जब इस धर्म की व्याख्या हिंदू, मुसलमान,सिख, ईसाई के सांप्रदायिक लोग गलत प्रकार से करते हैं तो एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय को दुश्मन समझने लगता है।


          शिक्षा का धर्म यही है कि सही व्याख्या को पुनर्प्रतिष्ठित करे। विज्ञान की शिक्षा इस प्रकार की हुई कि वह सार्वभौमिक बन गया। हिंदू,मुसलमान,सिख,ईसाई के लिए अलग-अलग विज्ञान नहीं होता। विज्ञान के नियम सभी के लिए एक हैं:फिर धर्म के नियम सभी के लिए एक क्यों नहीं हो सकते?


             विज्ञान पदार्थ के सत्य को आविष्कृत करता है और उसे दूसरा भी प्रयोग करके देख सकता है। इस प्रकार से विज्ञान सर्वस्वीकृत होता चला गया। किंतु धर्म आत्मा या चेतना के सत्य को आविष्कृत करता है और वह वैयक्तिक तथा एकांतिक होता है। इसे दूसरों को दिखाया नहीं जा सकता। अलग-अलग रास्ते से मंजिल पर पहुंचने पर सभी में एक भगवत् तत्व दिखाई देता है: अतः सभी धर्मों के सिद्ध पुरुष भगवान बन जाते हैं। रामकृष्ण परमहंस ने अलग-अलग धर्म के रास्ते से साधना की और एक ही मंजिल पर पहुंचे। उसी सत्य की उद्घोषणा उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने विश्वधर्म सम्मेलन में की थी-


"रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां


नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव" 


'शिवमहिम्नःस्तोत्रम्' के  इस श्लोक का अर्थ है कि जिस प्रकार सभी नदियाँ, चाहे वे सीधी हों या टेढ़ी, अपने-अपने रास्ते से बहते हुए अंततः समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार विभिन्न रुचियों और मार्गों का पालन करने वाले सभी मनुष्यों के लिए, आप ही अंतिम गंतव्य स्थान हैं। 


किंतु जो डॉक्टर आतंकी बन रहे हैं उनको शिक्षा एक पेशा या तकनीक की मिली है ; आत्मा या चेतना की नहीं। उनकी आत्मा या चेतना को कम पढ़ा-लिखा मौलवी दूषित कर देता है और जिहादी बनने को तैयार कर लेता है। यदि गलत व्याख्या किसी को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए तैयार कर सकती है तो सही व्याख्या किसी को सही रास्ते पर लौटने को भी तैयार कर सकती है।


मूल बात शिक्षा की है। पदार्थ का नियम विज्ञान सार्वभौमिक ढूंढ सकता है तो आत्मा या चेतना का नियम धर्म सार्वभौमिक क्यों नहीं ढूंढ सकता? क्या सत्य,प्रेम, करुणा सभी धर्म का सार नहीं है?


वस्तुतः सभी धर्म का सार तत्व एक है; किंतु धर्म की गलत व्याख्या करने वाले अपनी गलत शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके इंसान के मस्तिष्क को प्रदूषित करके उसे हैवान बना रहे हैं। सच्चे धर्म की सही शिक्षा उस गिरते हुए इंसान को भगवान भी बना सकती है; इसकी जिम्मेवारी हम सबकी हैं।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹