🙏संविधान दिवस की शुभकामना🙏


संवाद


'रामध्वज और राष्ट्रध्वज'


श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर पर  रामध्वज जब लहराया तो सवाल राष्ट्रध्वज का उठा। संविधान दिवस पर यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या रामध्वज और राष्ट्रध्वज में विशेष अंतर है?


मेरी समझ कहती है कि राजनीतिक दृष्टि से इन दोनों में भले ही अंतर दिखता है किंतु धार्मिक दृष्टि से कोई विशेष अंतर नहीं ; क्योंकि राजनीतिक दृष्टि विभाजन की दृष्टि है और धार्मिक दृष्टि समन्वय की दृष्टि है।


        स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के दौरान भारत के साथ सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि इतने बड़े विविधतापूर्ण देश के लिए कोई सर्वसमावेशी संविधान कैसे बना सकता है? किंतु संविधान निर्माताओं की प्रतिभा और परिश्रम ने वह संभव कर दिखाया। खासकर संविधान की प्रस्तावना में जो नीयत (intention)दर्शाया गया है कि हम भारत के लोग भारत के समस्त नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता,समता दिलाने के लिए और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता का भाव बढ़ाने के लिए इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं,ठीक वही नीयत (intention) है जो रामराज्य में दिखाई देता था-


'बयरु न कर काहू सन कोई


राम प्रताप विषमता खोई॥'


              हमें यह ध्यान रखना होगा कि 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़ा गया है,'धर्मनिरपेक्ष' नहीं। प्रस्तावना (preamble) संविधान की आत्मा है,उसी प्रकार से भारत की आत्मा धर्म है।


          हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि धर्मविहीन राजनीति विधवा के समान है। इसी कारण से संविधान-निर्माताओं ने भी संविधान के पृष्ठों पर भारत के धार्मिक और नैतिक चरित्रों को महत्वपूर्ण स्थान दिया। उसमें राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,अकबर,शिवाजी,गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मीबाई,तात्या टोपे, गांधी जी,सुभाष बोस जैसे सभी धार्मिक और नैतिक आदर्श सम्मिलित हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है 'भाग 3' जो अधिकारों से संबंधित है;उसमें प्रभु श्री राम का चित्र मां जानकी और भ्राता लक्ष्मण के साथ है।


          प्रभु श्री राम हमारे राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक हैं। कर्तव्य की बलिबेदी पर अपना सब कुछ अर्पण करके उन्होंने हमें संदेश दिया है कि अधिकारों की प्राप्ति का एकमात्र रास्ता अपने कर्तव्यों का संपादन है। तभी तो राजतंत्र के श्री राम लोकतंत्र में भी गांधी को राम-राज्य का सपना देखने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं क्योंकि-


"दैहिक दैविक भौतिक तापा।


राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥"


अर्थात् रामराज्य में किसी भी व्यक्ति को शारीरिक (दैहिक), दैविक और भौतिक कष्ट नहीं होता। 


             जिंदगी भर 'रघुपति राघव राजा राम,पतित पावन सीताराम' का भजन गाने वाले गांधी के हृदय में सदा राम विराजते थे और मरते वक्त भी उनके मुख से 'हे राम!' निकला। राम कृपा से ही उन्होंने सत्य,प्रेम,अहिंसा के रास्ते पर राष्ट्र को एक जुटकर स्वतंत्रता संग्राम में नर से लेकर नारी तक, बाल से लेकर वृद्ध तक सबको जोड़ दिया।


                मन,वचन,कर्म की एकता से राजनीति भी राम के लिए धर्म बन गई और  राम के इसी सद्गुण को अपनाकर गांधी मोहन से महात्मा बन गए-


"मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्"


इसका अर्थ है कि महान लोगों के मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है।


          आज धर्मविहीन राजनीति में मन,वचन,कर्म की दुरियां इतनी बढ़ गई है कि राजनीतिक विचारकों ने राजनीति को दुष्टों की अंतिम शरणस्थली बता दिया-


'मनस्यन्यत् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम् ॥'


अतः रामध्वज और राष्ट्रध्वज में कोई विशेष अंतर नहीं है यदि मन,वचन,कर्म की एकता हो।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹