शिक्षा के बिना परीक्षा
November 30, 2025/start
🙏राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली के अंतर्गत आंतरिक मूल्यांकन इसलिए शुरू किया गया था कि विद्यार्थी का सतत संपर्क शिक्षक से बना रहे किंतु बिना शिक्षा लिए परीक्षा देने विद्यार्थी आ जाते हैं जिसका परिणाम है योग्यताविहीन डिग्रीधारकों की बढ़ती फौज जो एक विचारणीय विषय है🙏
संवाद
'शिक्षा के बिना परीक्षा'
भारतीय संस्कृति ज्ञान प्रधान है। यहां धन,शक्ति से ज्यादा महत्त्व ज्ञान को दिया गया है और इसी कारण भारत विश्व गुरु बना। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य यही है कि भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर हमारी शिक्षा व्यवस्था लौटे क्योंकि ज्ञानं अनंतम् आनंदम्।
किंतु गैर शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों का समय और श्रम इतना व्यय हो रहा है कि मूल कार्य अध्ययन-अध्यापन गौण हो गए हैं। इस माहौल में सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली के कारण हर 6 महीने पर होने वाली परीक्षा और उसके पूर्व आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा के कारण शिक्षण कार्य बहुत प्रभावित हुआ है। उस पर से शिक्षालय में कई प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन के कारण पढ़ाई में व्यवधान उपस्थित होते रहता है। ऐसे में विद्यार्थी क्लास में नियमित नहीं आते हैं और मौलिक पुस्तकों की जगह पासबुक से पढ़ाई करते हैं। इस शिक्षा व्यवस्था में बिना पाठ्यक्रम पूर्ण हुए और बिना उपस्थिति सुनिश्चित किये जो विद्यार्थियों को परीक्षाओं में अच्छे अंक दिए जा रहे हैं,वे उनके लिए वरदान की जगह अभिशाप साबित हो रहे हैं। बिना शिक्षा के परीक्षा का परिणाम अत्यंत घातक रूप में सामने उपस्थित हो रहा है क्योंकि विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने की क्षमता का पूर्णतया अभाव हो गया है। हमारे ऋषि कहते हैं कि पुस्तक पढ़ा किंतु गुरु के सान्निध्य में रहकर नहीं पढ़ा तो वह विद्या सभा में सम्मानित नहीं होती,जिस प्रकार से शादी के बिना उत्पन्न हुआ बच्चा समाज में स्वीकृत नहीं होता-
'पुस्तक पठितम् नाधीतम् गुरु सन्निधौ
सभा मध्ये न शोभन्ते जारगर्भा इव स्त्रिय:।'
सबको अच्छे अंक देने के कारण प्रतिभाशाली और परिश्रमी विद्यार्थियों को विशेष प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। शिक्षकों के संपर्क में नहीं होने के कारण विद्यार्थियों का नैतिक और चारित्रिक पतन हो रहा है। बिना योग्यता के अच्छे नंबर लाने से शिक्षा संस्थान का प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में आ जाता है। अंततः आजीविका के उद्देश्य की गई पढ़ाई भी निष्फल साबित होती है क्योंकि प्रतियोगिता परीक्षा में ऐसे विद्यार्थियों को सफलता नहीं मिलती है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरु विद्यार्थियों की लिखित और व्यावहारिक दोनों परीक्षा लिया करता था। और परीक्षा इतनी कठिन होती थी कि उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या न्यूनतम होती थी। इससे अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों को अधिक मेहनत की प्रेरणा मिलती थी क्योंकि
'परीक्षा जिंदगी की पास करना है बहुत मुश्किल
इसमें एक भी उत्तर रटा घोटा नहीं होता
तिजारत कीजिए यदि चाह हो तुमको मुनाफे की
मोहब्बत के जुनूं में कुछ नफा टोटा नहीं होता।'
आज की शिक्षा व्यवस्था सबके लिए उपलब्ध तो करा दी गई है लेकिन सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई का कार्य इतना ज्यादा बाधित हो रहा है कि कोई भी अभिभावक अपनी संतानों को मजबूरी में ही वहां भेजता है।सरकारी शिक्षण संस्थानों में एक समय में सिर्फ पढ़ाई का काम बहुत गंभीरता से संपादित किया जाता था जिसके कारण निर्धन परिवार के कई विद्यार्थी अपनी प्रतिभा से ऊंचे पदों पर पहुंच जाया करते थे। लेकिन आज निर्धन परिवारों के लिए सरकारी शिक्षण संस्थान वरदान की जगह गैर शैक्षिक कार्यों की प्रधानता के कारण अभिशाप साबित हो रहे हैं।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹