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🙏मानवाधिकार दिवस की शुभकामना🙏


मानवाधिकारों का संघर्ष बढ़ता ही जाता है क्योंकि जिनसे हमें अधिकार लेना है,वे स्वयं अधिकारों के इतने भूखे हैं कि सारे अधिकारों को पचा जाते हैं: एक विश्लेषण


संवाद


'कर्त्तव्य गंगोत्री है और अधिकार गंगा'


मानवाधिकार दिवस की दार्शनिक पृष्ठभूमि यह है कि मानव अद्भुत संभावनाओं वाला जीव है, अतः उसके विकास के लिए कुछ मूलभूत अधिकार हर मानव को सुलभ होना चाहिए। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकार घोषणा पत्र इसी उद्देश्य से पारित किया गया। लेकिन मानव को धर्म,जाति,राष्ट्र,क्षेत्र, लिंग, भाषा इत्यादि अनेक आधारों पर बांटकर मानवाधिकार की घोषणा करने वाले अग्रणी देशों द्वारा अथवा शक्तिशाली सरकारों द्वारा मानवाधिकार को बार-बार कुचला गया है।


             जिस अमेरिका ने हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर मानवाधिकार को नेस्तनाबूद कर दिया था, उसी अमेरिका ने मानवाधिकार घोषणा पत्र की अगुवाई की। वही अमेरिका अस्त्र-शस्त्रों के व्यापार द्वारा किसी देश में संघर्ष पैदा कराता है और मानवाधिकार के हनन होने पर खुद न्यायाधीश भी बन जाता है।


              इसी प्रकार से धर्म के आधार पर गठित कई देशों की सरकारें अपने देशों में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार छीन लेती हैं और दूसरे देश में धर्म के आधार पर आतंकवाद को प्रोत्साहित करती हैं।


               दो विश्वयुद्धों में मानव के अधिकारों को जिस प्रकार से कुचला गया, उसकी पुनरावृत्ति न हो; इसलिए मानवाधिकार घोषणा पत्र लाया गया। इसके कारण तीसरा विश्व युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन युद्ध ने दूसरा रूप धारण कर लिया। ईरान इराक, हमास इजराइल, रूस यूक्रेन युद्ध हो अथवा आतंकवादी गतिविधियां हों ; मानवाधिकार का हनन जारी है जिसके कारण मानवता त्राहि त्राहि कर रही है।


             मानवाधिकारों की घोषणा करने वाला संयुक्त राष्ट्र संघ तो आज इतना कमजोर पड़ गया है कि विश्व के विभिन्न भागों में हो रहे मानवाधिकारों पर प्रकट की गई उसकी चिंता का कोई असर नहीं होता। इसके पीछे मूल कारण यह है कि राजनीति अधिकारों की बात बहुत करती हैं लेकिन दे नहीं सकती क्योंकि वह स्वयं अधिकारों की भूखी होती है।


                वेदांत की दृष्टि यह है कि कर्त्तव्य मूल है और अधिकार उसका फूल है। वस्तुतः मानव एक बीज है जिसके विकसित होने पर वह वृक्ष बन जाता है जो छाया भी देता है और फल-फूल भी-


'किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते हैं


गिरने से पहले उसको वे क्यों रोक नहीं लेते हैं।'


             इसलिए मानव रूपी बीज को कुछ अधिकार अवश्य मिलना चाहिए ताकि वह विकसित होकर वृक्ष बन सके। दूसरे शब्दों में मानव अपने कर्त्तव्य को करने के लिए स्वयं को विकसित करना चाहता है,उस रूप में अधिकार का महत्त्व सर्वाधिक है। उदाहरणस्वरूप एक मोहन धरती पर आता है, उसको शिक्षा का अधिकार मिलता है और वह विकसित होकर मोहन से महात्मा बन जाता है। फिर वह जगत को सत्य,प्रेम,अहिंसा का फल फूल वितरित करते रहता है। वह अपना जीवन कर्त्तव्य की बलिवेदी पर न्योच्छावर कर देता है  तब दूसरों को कई अधिकार प्राप्त होते हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए और हिंदू मुस्लिम एकता के लिए वह अपना अंतिम बलिदान भी कर देता है-


'जहां कहीं है ज्योति जगत में जहां कहीं उजियाला


वहां खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला‌।'


               वह ज्योति शिक्षा की ज्योति है जिसके जलने पर मानव रूपी बीज वृक्ष बन जाता है। लेकिन शिक्षा रूपी ज्योति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानवाधिकार भी सबको सुलभ नहीं हुआ। आज तो शिक्षालयों से या तो धुआं उठ रहा है या धार्मिक शिक्षा के नाम पर नफरत की आग लगाई जा रही है। धर्म स्थान या धर्म ग्रंथ को लोग एक दूसरे को काटने का हथियार बना रहे हैं जबकि सम्यक शिक्षा उससे ऐसी ज्योति जला सकती है जिससे सभी का मानवाधिकार सुरक्षित और संवर्द्धित हो सकता है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹